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________________ २०. जैन धर्म में अहिंसा प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट पहुँचाना हिंसा है और प्राणि-मात्र को किसी भी प्रकार का कष्ट न देना अहिंसा है। हिंसा मन, वाणी तथा काय ( जिन्हें जैनमतानुसार योग की संज्ञा दी गई है ) से होती है । अतः इसके आधार पर हिंसा के दो रूप होते हैं-भाव तथा द्रव्य । इसके तीन करण भी होते हैं अर्थात् यह स्वयं की जाती है, दूसरों से करवाई जाती है तथा अनुमोदित होती है । इसके संबंध में वैदिक, बौद्ध तथा जैन परंपराओं के विचार मिलते-जुलते से हैं, तथापि 'करण' नाम इन्हें सिर्फ जैन-परंपरा में ही दिया गया है। जैनधर्म में संरंभ, समारंभ तथा आरंभ के और तीन योग, तीन करण के संयोग से हिंसा के कुल १०८ भेद माने गये हैं; वैदिक परंपरा के योग-दर्शन ( ब्राह्मणदर्शन ) के व्याख्याकार ने हिंसा के ८१ भेद बताये हैं; लेकिन बौद्ध-परंपरा एवं गांधीवाद आदि में ऐसी बात नहीं पाई जाती है। जैनधर्म में जीव के छः प्रकार बताये हैं जिनकी हिंसा विभिन्न प्रकारेण होती है। किन्तु अन्य परंपराओं में जीव के अस्तित्व पर इतनी सूक्ष्मता से विचार व्यक्त नहीं किया गया है । न इन सभी की हिंसा के अलग-अलग मार्ग ही दिखाये गये हैं। वनस्पतिकाय की हिसा पर बौद्ध-परंपरा एवं गांधीवाद ने विचार प्रकट किया है, लेकिन पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय की हिंसा का प्रश्न इन सबों के सामने नहीं आता, क्योंकि इन सबों की विचार-शृंखला में यह बात आई ही नहीं है कि ये काय स्वत प्राणवान होते हैं अश्वा नहीं। यदि कहीं पर अग्नि आदि से हिंसा होने की बात आती भी है तो इसलिए कि अग्नि से छोटे जीवों की जो दीखते तक नहीं, हिंसा की संभावना रहती है, इसलिए नहीं कि वह स्वयं प्राणवान है। जैन मत में अग्नि को जलाने से अन्य सूक्ष्म प्राणियों की हिंसा होती है और अग्नि को बुझाने से अग्निकाय की हिंसा होती है। ऐसी हालत में हिंसा से बचने के लिए एक व्यक्ति को चाहिए कि वह न अग्नि जलाए और न बुझाए ही। हिंसा के पोषक तत्त्व हैं-असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य एवं परिग्रह । ऐसे ही अहिंसा के भी पोषक तत्त्व हैं-सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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