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________________ गांधीवादी अहिंसा. श्रमण और श्रावक : 1 जैनधर्म ने अहिंसा को पंचमहाव्रतों में स्थान दिया है- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह | ये महाव्रत श्रमणों या मुनियों के द्वारा पाले जाते हैं । इन व्रतों का पालन करने के लिए एषणा, समिति, गुप्ति आदि निर्धारित हुई हैं। श्रावकों अथवा गृहस्थों के लिए अणुव्रत, गुणव्रत तथा शिक्षाव्रत की शिक्षा दी गई है । अणुव्रत में व्रतों की मर्यादा कुछ सीमित रहती है । जैसे अहिंसा पालन में ही यह बताया गया है कि श्रमणों के लिए यह आवश्यक है कि वे अहिंसा का पूर्णरूपेण पालन करें यानी स्थूल तथा सूक्ष्म दोनों प्रकार के जीवों को धात से बचावें । श्रावक के लिए मात्र स्थूल हिंसा से बचना ही जरूरी कहा गया है । हिंसा अथवा अहिंसा-संबंधी विचार श्रमण और श्रावक के लिये अलग-अलग ढंग से किये गये हैं । ऐसी बात गांधीवाद में नहीं मिलती। गांधीवाद ने गृहस्थ तथा साधु सबके लिए अहिंसा का महत्त्व बराबर समझा है । Jain Education International २५९ जैन धर्म ने अहिंसा - पालन के लिए विभिन्न प्रकार की मर्यादाएं निर्धारित की हैं ताकि हिंसा कम हो । गांधीवाद में ऐसी कोई मर्यादा नहीं मिलती। यदि वस्त्र मर्यादा के लिए खादी पहनना बताया गया है और इस मर्यादा का उद्देश्य हिंसा कम करना है तो भी यह अहिंसा का सीधा साधन नहीं बनती है जैसा कि जैनधर्म में है, बल्कि यह अर्थशास्त्र की राह से अहिंसा तक पहुंचती है । यानी इसमें आर्थिक शोषण, जो हिंसा का ही एक रूप है, से बचने पर जोर दिया गया है । अहिंसा और यज्ञ: वैदिक परम्परा के अनुसार यज्ञ में होनेवाली हिंसा का जैनधर्म ने बिल्कुल विरोध किया है । गांधीजी ने कहा है कि हिंसा चाहे यज्ञ में हो या अन्य कहीं किन्तु वह हिंसा ही है, अहिंसा नहीं। फिर भी व्यवहार ने इसे अनिवार्य हिंसा मानकर दोषरहित समझ रखा है । लेकिन इन्होंने अनिवार्य हिंसा की कोई परिभाषा नहीं दी है, इसलिए इस संबंध में इनका विचार स्पष्ट नहीं मालूम होता । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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