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________________ गांधीवादी अहिंसा २५७ चलने से हिंसा होती है । गांधीजी ने वनस्पति में प्राण होता है और उसका घात होता है इसे तो माना है, लेकिन अग्नि के विषय में उनका हिंसा या अहिंसा मानना इसलिए है कि अग्नि में जलनेवाली लकड़ी आदि के साथ बहुत से सूक्ष्म जीव मर जाते हैं, इसलिए नहीं कि अग्नि स्वत: प्राणवान है । इसी तरह पृथ्वीकाय और अप्काय के विषय में उनका कोई स्पष्ट विचार नहीं मिलता। लेकिन जैनधर्म ने षट्कायों के अलग-अलग विश्लेषण किये हैं, उनकी हिंसा और अहिंसा के अलगअलग तरीके भी बताये हैं । किन्तु गांधीवाद में जीव के विषय में जैन धर्म की तरह कोई तात्त्विक विश्लेषण नहीं किया गया है, इसलिए हिंसा के भी सामान्यतौर से इसमें तीन कारण बताये गये हैं - १. स्वार्थ - अपनी सुख-सुविधा के लिए, २. परमार्थ - दूसरे की सुख-सुविधा के निमित्त तथा ३ हिंसा की जानेवाले प्राणी के हित के निमित्त अर्थात् हिंसा करने में हिंसक का उद्देश्य उसी को लाभ पहुंचाना होता है जिसकी वह हिंसा करता है | हिंसा के विभिन्न रूप तथा अहिंसा के विभिन्न नाम : प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा के पाप, चण्ड, रौद्र, साहसिक, अनार्यं आदि विभिन्न २२ रूप बताये गये हैं । गाँधीजी ने कहा है कि अहम् या अहमत्व पर आधारित जितने भी कार्य हैं, वे सभी हिंसा हैं, जैसे स्वार्थ, प्रभुता की भावना, जातिगत विद्वेष, असंतुलित एवं असंयमित जीवन | प्रश्नव्याकरण सूत्र में ही अहिंसा के शान्ति, यश, प्रसन्नता, रति, विरति श्रुतांग, नाम बताये गये हैं । किन्तु गांधीजी ने मोटे ढंग से स्वार्थत्याग, जनकल्याण के लिए किये गये कार्य, असंयमित भोगप्रवृत्ति का त्याग आदि को अहिंसा कहा है । निर्वाण, निवृत्ति, समता, संतोष, दया आदि साठ 3 हिंसा तथा अहिंसा के पोषक तत्त्व : असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य तथा परिग्रह हिंसा के पोषक तत्त्व हैं । इन सभी से किसी न किसी रूप में हिंसा होती है । ठीक इसके विपरीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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