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________________ २५५ गांधीवादी अहिंसा 'असहयोग और सविनय अवज्ञा सत्याग्रह रूपी एक ही वृक्ष की विभिन्न शाखाएं हैं । यह मेरा कल्पद्रुम है । सत्याग्रह सत्य का शोध है; और ईश्वर सत्य है। अहिंसा वह प्रकाश है, जो मुझे सत्य को प्रकट करता है। मेरे लिए स्वराज उसी सत्य का एक अंग है। असहयोग को निष्क्रिय समझना भूल के सिवाय और कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि यह सिर्फ सक्रिय ही नहीं है, बल्कि इसमें शारीरिक अवरोध, प्रतिरोध या हिंसा से बहत अधिक क्रियाशीलता है। गांधीजी ने जिस रूप में इसका प्रयोग किया है, वह निश्चित ही अहिंसात्मक है और इसमें लेशमात्र भी दण्डात्मक या प्रतिहिंसात्मक भावना नहीं है। यह द्वेष, दुर्भाव तथा घृणा से बिल्कुल ही दूर है। इसमें अनुशासन और उत्सर्ग की जरूरत होती है। दूसरे की विरोधी भावनाओं के लिए यह हिंसा को नहीं अपनाता, बल्कि धैर्य और सहिष्णुता का सहारा लेता है।३ जिस असहयोग में प्रेम नहीं वह राक्षसी है; जिसमें प्रेम है वह ईश्वरी है। हमारे असहयोग के मूल में प्रेम है।' इस प्रकार गांधीजी ने अहिंसा को विभिन्न रूपों में अपनाया है, जिसकी वजह से प्राचीन होते हए भी यह नवीन दीखती है, फिर भी इतना कहना कोई गलत न होगा कि इनके विचार में अहिंसा के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप अधिक प्रकाशित हुए हैं । गांधीवादी अहिंसा एवं जैनधर्म-प्रतिपादित अहिंसा : ___ जैनधर्म प्रतिपादित अहिंसा से हमलोग पहले ही पूर्णरूपेण अवगत हो चुके हैं, अतः यहाँ अब यह देखने का प्रयास करना श्रेयस्कर होगा कि गांधीवादी अहिंसा तथा जैनधर्मानुमोदित अहिंसा में किन-किन स्थलों पर समानता है तथा किन-किन जगहों पर असमानता। १. यंग इंडिया, २६ दिसम्बर १९२४. २. गांधीवाणी-रामनाथ सुमन, पृ० १६०; यं० इंडिया २५ अगस्त १९२०. " " : " १५ दिसम्बर १६२०. ४. वही, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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