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________________ गांधीवादी अहिंसा २४५ २. अहिंसा आत्मा से पैदा होनेवाला एक भाव है, जो सक्रिय नहीं होता । लेकिन दया और अनुकम्पा व्यवहारजन्य भाव हैं । सक्रिय हैं; अहिंसा सक्रिय नहीं है । दया का अहिंसा के बदले और अहिंसा का दया के बदले उपयोग होने पर अहिंसा के सच्चे अर्थ का उल्लंघन होता है । इस कारण दया और अहिंसा के बीच का भेद जान लेने योग्य है । ३. क्या किसी क्रूर और जंगली कही जानेवाली मनुष्यभक्षी जाति में मनुष्यजाति के प्रति प्र ेम पैदा करके, दया उपजाकर, दूसरे प्राणी और मनुष्य के बीच का विवेक समझाकर उसका मनुष्य भक्षण छुड़ाना और पशु के मांस से अपना निर्वाह करने की बात कहना, अथवा मांस खानेवाले लोगों को फल, फूल, वृक्ष आदि वनस्पति से जीवन-निर्वाह करने की बात कहना, उन्हें अहिंसा का मार्ग बतलाना कहा जायगा ? विचार करने पर यह एकांग विवेक प्रतीत होगा । एकांग होते हुए भी यह सदोष है । अहिंसा की दृष्टि में जीवमात्र समान हैं । इस कारण ऊपर का मार्ग अहिंसा का मार्ग नहीं है। इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए गांधीजी ने कहा है कि अहिंसा और दया में उतना ही अन्तर है, जितना कि सोने और सोने से बने हुए गहने में या बीज और वृक्ष में । दया के बिना अहिंसा हो ही नहीं सकती जैसे बीज के बिना वृक्ष नहीं हो सकता । किन्तु अज्ञान या कायरतावश की गई दया को अहिंसा नहीं कह सकते । यदि कोई व्यक्ति कर अपने आक्रमणकारी को कुछ नहीं कहता या उसके साथ कुछ नहीं करता, इसका यह अर्थ नहीं कि उसने दयाभाव के वशीभूत हो कुछ किया नहीं और चुपके से बैठा रहा । अतः दया अहिंसा का स्रोत है, किन्तु उसे कायरता और भय से दूर रहना चाहिये । क्रियाहीन अहिंसा आकाश के फूल के समान है अर्थात् ऐसा नहीं कहा जा सकता कि अहिंसा सक्रिय नहीं है, क्योंकि कोई भी क्रिया होती है, उसमें सिर्फ हाथ और पैर ही सब कुछ हो ऐसी बात नहीं । विचार के बिना क्रिया हो ही नहीं सकती, दूसरे शब्दों में विचार भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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