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________________ गांधीवादी अहिंसा २४१ १ व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण - भोजन आदि ग्रहण करने में जो हिंसा होती है, उसमें व्यक्तिगत स्वार्थ है, क्योंकि भोजन से अपने शरीर की रक्षा होती है। २. परमार्थ के लिए हिंसा-गांवों में आए हिंसक प्राणियों, जैसे सिंह आदि की हिंसा परमार्थ के लिए होती है। ३. उसी प्राणी की सुखशान्ति के लिए हिंसा करना, जिसकी हिंसा की जाती है-यदि किसी की अंगुली में घाव हो गया हो और उसमें सड़न पैदा हो गया हो तो ऐसी हालत में डाक्टर के द्वारा उसकी अंगलियों का काटना हिंसा नहीं हो सकती, क्योंकि डाक्टर अंगलियों को इसलिए काटता है कि उस व्यक्ति का घाव आगे बढ़े नहीं और न उसका सारा शरीर घावमय हो जाये।। इन तीनों में से प्रथम दो में हिंसा का होना अनिवार्य है, क्योंकि यदि हिंसा का ध्यान करते हए कोई व्यक्ति भोजन छोड़ दे तथा हिंसक पशुओं को मारे बिना उन्हें स्वतन्त्र विचरण करने दे, तो ऐसी हालत में जीना तक मुश्किल हो जायेगा। अतः इन दोनों में हिंसा का कुछ अंश है। किन्तु तीसरी बिल्कुल अहिंसा है क्योंकि ऐसी हिंसा में हिंसक का कोई अपना स्वार्थ नहीं होता यहाँ हिंस्य जीव को सुख पहुंचाने की दृष्टि से हिंसा की जाती है। मात्र जीव को मार देना ही हिंसा नहीं : एक बार अम्बालाल नामक एक सेठ ने अहमदाबाद में साठ कुत्तों को मरवा दिया। उन कुत्तों में से एक पागल था और अन्य ५९ को उसने काट खाया था। इस घटना को गांधीजी ने अहिंसा घोषित किया। उनके विरोध में बहुत से लोगों ने तरह-तरह के पत्र भेजे तथा झगड़ने को तैयार हुए। लेकिन गांधीजी ने अपने विचार की पुष्टि के लिए दो कारण प्रस्तुत किए : कुत्ता, घोड़ा आदि वफादार जानवर होते हैं। लेकिन कुत्तों को उचित भोजन नहीं मिलता और वे इधरउधर भटकते रहते हैं। अतः उनकी वफादारी हम अन्य ढंग से नहीं चुका सकते तो उन्हें मारकर ही हम उन्हें उस कष्ट से बचा जो कि गलियों में भोजन के लिए भटकते हुए मार खाने में प्राप्त होता है। एक कुत्ते के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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