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________________ जैन धर्म में अहिंसा ३. साडी-कम्मे ( शकटकर्म ) -शकट अर्थात् बैलगाड़ी, रथ, मोटर, तांगा आदि बनाना और बेचना। ४. भाड़ीकम्मे ( भाटीकर्म )- बैल, अश्व आदि पशुओं को भाड़े पर देना। ५. फोड़ो-कम्मे ( स्फोटोकर्म ) --खान खोदने और पत्थर तोड़ने फोड़ने के व्यापार । ६. दंतवाणिज्जे ( दन्तवाणिज्य )- हाथी दाँत या अन्य पशु के बहमूल्य दांतों, हडिडयो एवं चमड़ों का व्यापार करना। ७. लक्खवाणिज्जे ( लाक्षवाणिज्य )-लाख या लाह का व्यापार करना। ८. रसवाणिज्जे ( रसवाणिज्य )- मदिरा आदि रस का व्यापार करना। विसवाणिज्जे ( विषवाणिज्य )- विभिन्न प्रकार के विषों का व्यवसाय करना जिनमें बन्दूक, तलवार, धनुष-वाण बारूद आदि वस्तुएं भी समझनी चाहिये । १०. केसवाणिज्जे ( केशवाणिज्य )-बालों या बालवाले प्राणियों का व्यापार । मोर-पंख तथा ऊन का व्यापार इसके अन्तर्गत नहीं आता, क्योंकि इन्हें प्राप्त करने के लिये प्राणियों को मारना नहीं पड़ता। ११. जन्तपीलणकम्मे (यन्त्रपीडनकर्म)- कोल्हू आदि से सरसो, तिल आदि पेरना। १२. निल्लंछणकम्मे निर्लाञ्छनकर्म ) - बैल, बकरे आदि नपुंसक बनाना। १३. दवग्गिदावणया ( दावाग्निदापनता )- जंगल में आग लगाना। जंगल में आग लगाने पर उसमें रहनेवाले बहत से त्रस प्राणियों का विनाश हो जाता है। १४. सरदहतलायसोसणया सरोह्रदतडागशोषणता)- झील, सरोवर, तालाब आदि जलाशयों को सुखा देना। १५. असईजणपोसणया असतीजनपोषणता ) - व्यभिचार के उद्देश्य से वेश्या आदि नियुक्त करना और शिकार करने के निमित्त कुत्ते, बिल्ली आदि हिंसक पशुओं को पालना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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