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________________ २२२ जैन धर्म में अहिंसा जैसे आनन्द ने केवल वर्षा का जल ग्रहण करने और अन्य सभी प्रकार के जलों को त्यागने का वचन लिया। २१. ताम्बूलविधि - मुखवास का परिमाण मर्यादित करना। जैसे आनन्द ने कहा कि मैं पाँच सुगन्धित वस्तुओं (कंकोल, कालीमिर्च, एला, लवंग, जातिफल, कर्पूर) से युक्त ताम्बूल के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार की सुगन्धित वस्तुओं को, जो मुख को सुवासित करती हैं, त्यागता हूँ। __इतना ही नहीं, अन्य आचार्यों ने और भी पांच प्रत्याख्यान बताये हैं - वाहन, उपानत् यानी जूता, शय्यासन, सचित्त वस्तु, खाने के अन्य सामान आदि को मर्यादित करना । अत: सब मिलकर छन्वीस प्रकार के प्रत्याख्यान होते हैं। इन सबके पीछे यही उद्देश्य है कि जीवन संयमित हो तथा किसी भी प्राणी की हिंसा न हो। क्योंकि खाने-पीने, वस्त्रादि धारण करने तथा वाहन आदि के प्रयोग में षटकायों में से किसी न किसी प्रकार के जीवों का घात होता ही है। जितनी ही उपभोग-परिभोग में वृद्धि होगी, उतने ही अधिक प्राणियों की हिंसा होगी। अतएव हिंसा को रोकने तथा अहिंसा को सहारा देने के ध्येय से ही उपभोग-परिभोग व्रत का पालन किया जाता है- ऐसा कहा जाये तो इसमें शंका की कोई भी संभावना नहीं दीखतो। इस व्रत का निरूपण या प्रतिष्ठापन दो प्रकार से होता है - १. भोजन तथा २. कर्म । भोजन से सम्बन्ध रखनेवाले इस व्रत के पांच अतिचार हैं१. सचित्ताहार-अर्थात् उन वस्तुओं को ग्रहण करना, जिनमें जीव हो। १. नन्नत्थ एगेणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं पाणियविहिं पच्चक्खामि । -उपा० सू०, प्र० अ०, पृष्ठ ४३. २. नन्नत्य पंचसोगंधिएण तंबोलेणं, अवसेसं मुहवासविहिं पच्चक्खामि । -उपा० सू०, प्र० अ०, पृष्ठ ४४. ३. जैन आचार, डा० मोहनलाल मेहता, पृष्ठ १०७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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