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जैनाचार और अहिंसा
२२१ १५. सूपविधि-दालों के परिमाण पर नियंत्रण करना । जैसे आनन्द ने मटर, मूग तथा उड़द की दाल के अतिरिक्त अन्य सभी की दालों का प्रत्याख्यान किया।
१६. घृतविधि-घृत का त्याग । जैसे आनन्द अन्य प्रकार के घृतों का त्याग करके केवल शरत्कालीन दानेदार गोघृतमंड लेने को तैयार हुआ।
१७. शाकविधि-शाक ग्रहण करने पर नियंत्रण । जैसे आनन्द ने कहा कि मैं सिर्फ बथुआ, चूच्चु, घीया, सौवस्तिक और मण्डुकिक के अतिरिक्त अन्य सभी शाकों का प्रत्याख्यान करता हूँ ।
१८. माधुकरविधि-मेवा-मिष्ठान्न को परिमाणित करना । जैसे आनन्द ने अन्य सभी प्रकार के मेवा-निष्ठान्नों को त्यागकर सिर्फ पालंगा माधुर यानी शल्लकी जाति की वनस्पति के गोद से तैयार एक पेयविशेष को ग्रहण करने का वचन लिया।
१९. जैमनविधि - व्यंजन का प्रत्याख्यान । जैसे आनन्द ने केवल सेधाम्ल तथा दालिकाम्ल के अतिरिक्त अन्य सभी तरह के व्यंजनों का परित्याग कर दिया।
२०. पानीयविधि-पीने के पानी का परिमाण नियंत्रित करना।
१. नन्नत्थ कलायपूवेण वा, मुग्गमाससूवेण वा, अवसेसं सूवविहिं पच्चक्खामि ।
-उपा०, प्र० अ०, पृष्ठ ४०. २. नन्नत्थ सारहएणं गोघयमण्डएणं, अवसेसं घयविहिं पच्चक्खामि ॥
-उपा०, प्र० अ०, पृ. ४१ ३. नन्नत्थ वत्थु-साएण वा, चून्चुसाएणं वा, तुबसाएण वा सुत्थियसाएण वा, मुण्डुविकयसाएणवा, अवसेसं सागविहिं पच्चक्खामि ।
-उपा०, प्र. अ., पृष्ठ ४१. ४. नन्नत्थ एगेणं पालंगामाहुरएणं, अवसेसं माहुरयविहिं पच्चक्खामि ।
-उपा०, प्र० अ०, पृष्ठ ४२. ५. नन्नत्य सेहंब दालियबेहिं, अवसेसं जेमण विहिं पच्चक्खामि ।
-उपा० प्र० अ०, पृष्ठ ४२.
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