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________________ जैनाचार और अहिंसा २१५ वशीभूत हो असत्य भाषण बिल्कुल नहीं करना चाहिये और वह सत्य भो नहीं बोलना चाहिये, जिससे किसी को पीड़ा पहुंचे अथवा किसी की हिंसा हो' । स्थूल अदत्तादान- विरमण - अचौर्य के बिना न अहिंसा का सम्यक् पालन हो सकता है और न सत्य का ही । अत: अहिंसा के पथ पर चलनेवाले के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि वह अदत्तादान का त्याग करे | किन्तु मुनि अथवा श्रमण की भांति अदत्तादान का पूर्णरूपेण पालन करना श्रावक के लिये अशक्य हो जाता है, इसलिये उसे स्थूल अदत्तादान विरमण का पालन करना चाहिये यानी उसे बिना दी हुई वस्तु को मन, वचम, काया से न ग्रहण करना चाहिये और न दूसरों को उसे ग्रहण करने की आज्ञा देनी चाहिये । स्थूल चोरी यानी मोटी चोरी के अन्तर्गत ये सब आते हैं- सेंध काटकर चोरी करना, अधिक मूल्यवाली वस्तु को बिना पूछे हुए ले लेना, राहियों को लूटना-खसोटना आदि । स्वदार-सन्तोष—इस व्रत के अनुसार पति को सिर्फ अपनी पत्नी के साथ तथा पत्नी को केवल अपने पति के साथ संभोग करना चाहिये। मैथुन में अनेक जीवों का नाश होता है । अतः मैथुन १. अलियं ण जंपणीय पाणिवहकरं तु सच्चवयणं पि । रायेण य दोसेण य । णेयं बिदियं वयं थूल || २१० || - वसुनन्दिकृत श्रावकाचार. २. तयाणंतरं च गं थुलगं अदिण्णदाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं, न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा ।। १५ ।। उपासक दशांग सूत्र, प्रथम अध्ययन पृष्ठ ५७. "" निहितं वा पतितं वा सुविस्मृतं वा परस्वम विसृष्टम् । न हरति यन्न च दत्त े तदकृश- चौर्यादुगरमणम् ||११|| ५७ ॥ - समीचीन धर्मशास्त्र. " ३. तयाणंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ, नन्नत्थ एक्काए सिवानंदाए भारियाए अवसेसं सव्वं मेहणुविहिंपच्चक्खामि | १६ | - उपासकदशांग सूत्र, प्रथम अध्याय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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