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________________ २०३ जैन दृष्टि से अहिंसा के शिष्यों के विचारों में भी एकता नहीं थी। अतः उन सब में भी कहीं संघभेद न हो जाये, इसकी आशंका थी। अतएव महावीर के सामने वस्तु के वास्तविक स्वरूप को दिखाते हुए सभी वादों में एकता या मैत्रीभावना लाने की समस्या थी। उन्होंने यह साबित किया कि वस्तु यदि मौलिक रूप में नित्य है तो परिवर्तमान पर्यायों की दृष्टि से अनित्य भी है। द्रव्य के दृष्टिकोण से यदि सत् से ही सत् उत्पन्न होता है तो पर्याय की दृष्टि से असत् से भी सत् उत्पन्न होता है। इस प्रकार उन्होंने सत्य को या जगत के यावत् को पदार्थों का उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यरूप परिणामी और अनन्त धर्मात्मक बताया। इस प्रकार वस्तु के वास्तविक रूप को दिखाकर उन्होंने दर्शन के क्षेत्र के बहुत बड़े झमेले को हटाने की कोशिश की । जब तक दृष्टि एकान्तवादी होती है, उसके साथ विभिन्न मतमतान्तर की संभावना रहती है किन्तु अनेकान्त की दृष्टि वस्तु के सभी रूपों को सही मानती है। अतः कोई विवाद नहीं उठता । अहिंसा ही तत्त्व के क्षेत्र में अनेकान्त रूप धारण करती हैयह अहिंसास्वरूपा अनेकान्तदृष्टि ही जैनदर्शन के भव्य प्रासाद का मध्य स्तम्भ है । इसी से 'जैनदर्शन' की प्राण प्रतिष्ठा है । आगे चलकर अनेकान्त दृष्टि को ज्ञानमीमांसा के क्षेत्र में 'स्याद्वाद' का रूप मिला जिससे अहिंसा का वाचनिक विकास हुआ। वस्तु अनेकधर्मा होती है - जैसे किताब में लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई आदि बहुत से गुण होते हैं और कोई कहे कि पुस्तक मोटी है तो ऐसा कहने से उसके अन्यगुणों का प्रकाशन नहीं होता क्योंकि 'पुस्तक मोटी है' ऐसा अपेक्षा दृष्टि से कहा गया है। यदि एक दृष्टि से पुस्तक मोटी है तो दूसरी दृष्टि से लम्बी है यानी मोटी नहीं है । अतः एक दृष्टि से वस्तु के गुण को व्यक्त करते समय, दूसरी दृष्टि में पाये जाने वाले उसके गुणों के अस्तित्व को व्यक्त करने के लिए, महावीर ने एक शब्द की खोज की जो है- 'स्यात्' । 'स्यात्' कहने से एक दृष्टि की सीमा बन जाती है, किन्तु वस्तु के सम्बन्ध में अन्य दृष्टियों ( अनेकान्त) पर उसका अधिकार या अन्य दृष्टियों का निषेध जाहिर नहीं होता। . १. जैनदर्शन-पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पृ० ६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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