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________________ १६४ जैन धर्म में अहिंसा (गौतमस्वामी पूछते हैं ) हे भदन्त ! तथारूपवाले श्रमण या माहन के लिये प्रासुक एषणीय अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम आहार देनेवाले श्रमणोपासक को क्या फल प्राप्त होता है ? (भगवान महावीर के द्वारा दिया गया उत्तर) हे गौतम ! श्रमणोपासक श्रावक को एकान्त निर्जरा होने रूप फल प्राप्त होता है। पाप कर्म उसे नहीं लगता। प्र.-हे भदन्त ! तथारूपवाले श्रमण वा माहन के लिये अप्रासुक अनेषणीय अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम आहार देनेवाले श्रमणोपासक को क्या फल प्राप्त होता है ? उ०-हे गौतम ! ऐसे श्रमणोपासक श्रावक के कर्मों की निर्जरा अधिक होती है तथा बहुत कम पापकर्म का बंध होता है। प्र०-हे भदन्त ! तथा प्रकार के विरतिरहित अप्रतिहत और अप्रत्या ख्यात पापकर्मवाले असंयमी के लिये प्रासुक अथवा अप्रासुक, एषणीय तथा अनेषणीय अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम आहार देनेवाले श्रावकों को क्या फल प्राप्त होता है ? उ०-हे गौतम ! ऐसे श्रावक के एकान्ततः पापकर्म का बंध होता है निर्जरा थोड़ी-सी भी नहीं होती है।' किन्तु इन तीन विकल्पों के अलावा भी एक विकल्प अनुकम्पा दान के संबंध में है यानी अनुकम्पादान से क्या फल मिलता है ? यह १. समणोवासगस्त णं भंते ! तहारूवं समणं वा माहण वा फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलामेमाणस्स कि कज्जइ ? गोयमा ! एगतसो निज्जरा कज्जइ, नत्थि य से पावे कम्मे कज्जइ । समणोवासगस्स णं भंते ! तहारूव समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेण असणपाणजाव पडिलाभेमाणस्स किं कज्जइ ? गोयमा ! बहुतरिया से निज्जरा कज्जइ, अप्पतराए से पावे कम्मे कज्जइ, समणोवासगस्स णं भते ! तहा. रूवं असंजयअविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मं फासुएणवा अफासुएणवा एसणिज्जेणवा, अणेंसणिज्जेणवा, असणपाण जाव किं. कज्जा ? गोयमा! एगंतसो से पावे कम्मे कज्जइ, नत्थि से काह निज्जरा कज्जा ।। सू० १॥ भगवती सूत्र-अनु० घासीलालजी -शतक ८, उद्देश० ६, पृ० ६६१-६६४, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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