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________________ १८८ जैन धर्म में अहिंसा करुणा या दया के चार विभाग किये जा सकते हैं - १. द्रव्यदया-जीव मानसिक या वाचिक या कायिक किसी भी प्रकार के कष्ट की इच्छा नहीं करता जैसा कि हमलोगों ने आगमों (आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन आदि) में अहिंसा संबंधी विवेचन को प्रस्तुत करते हुए देखा है। जो व्यक्ति ज्ञानी हैं, वे अपनी आत्मा की तरह ही दूसरे जीवों की आत्माओं को समझकर किसी अन्य प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाते, और जहाँ तक दूसरों के कष्ट निवारण में वे अपने को सफल बना पाते हैं, वहाँ तक वे द्रव्य दया के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने, अपने परिवार या समाज, राष्ट्रादि के लिए किसी प्राणी को किसी भी प्रकार का कष्ट देता है तो वह दया के पथ का पथभ्रष्ट पथिक समझा जाता है। २. भावदया पौद्गलिक सुख जिसे सामान्यतौर से सुख के रूप में लिया जाता है, अनित्य होता है अत: इसकी अनित्यता को ध्यान में रखते हुए जो विकसित प्राणी हैं, वे आत्मिक सुख की प्राप्ति की इच्छा करते हैं। क्योंकि आत्मिक सुख नित्य अथवा शाश्वत समझा जाता है। जब आत्मगुणों का विकास होता है तो आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है। अतः आत्मिक सुख प्राप्ति हेतु निष्कंटक पथ प्रशस्त करना या आत्मिक सुख के लिए पथ प्रदर्शित करना ही भाव दया है । दूसरे शब्दों में आत्मगुणों का विकास करना भावदया है। कहा गया है-'आत्मगुण अविराधना भावदया भण्डार ।' ३. स्वदया-स्वदया का अर्थ होता है अपने आप पर दया करना। जीव जड़तत्त्व में आसक्त होकर नाना प्रकार के सांसारिक कष्टों से ग्रस्त रहता है। किन्तु जब वह इस मोह को जड़ से मिटाने का प्रयास करता है और मिटा पाता है तो जन्म-मरण के दुःख से छुटकारा पाकर वह परम सुख-शान्ति को प्राप्त करता है। अतः सांसारिक ममता को दूर करने का प्रयास ही स्वदया है। इस प्रकार स्वदया का सही-सही पालन करके प्राणी मुक्ति को प्राप्त करता है। ४. परदया-सामान्यरूप से परदया को ही लोग दया समझते हैं। परदया यानी दूसरों की सुख-प्राप्ति तथा दुःख दूर करने में सहायक होना । अर्थात् परदया का पालन करनेवाला व्यक्ति दूसरों के सुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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