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________________ १५८ जैन धर्म में हिंसा हुए जल से स्नान कराया गया और काफी सजधज के साथ बारात ने प्रस्थान किया । किन्तु प्रस्थान के समय ही उन्होंने बाड़ों और पिंजरों में बन्द भयाकुल तथा दुःखित पशु-पक्षियों का आर्तनाद सुना और पूछने पर सारथि से उन्हें ज्ञात हुआ कि वे पशु-पक्षी इसलिये बाड़ों में बन्द थे कि उनकी शादी की खुशी में उन सबों को मारकर उनके कुटुम्बियों तथा मित्रों को मांस भक्षण कराया जाएगा। यह बात नेमिनाथ के हृदय को छू गयी और उन्होंने सभी पशु-पक्षियों को बाड़ों से निकलवा कर स्वतंत्र कर दिया और अपनी शादी रोक दी तथा घरबार त्याग कर सीधे जंगल की ओर चल पड़े। जिस समय नेमिनाथ को विभिन्न औषधियों से मिश्रित जल से स्नान कराया गया, उस समय निश्चित ही असंख्य अप्काय जीवों तथा अन्य छोटे-छोटे जीवों की हिंसा हुई होगी किन्तु उन्होंने स्नान कर्म को रोका नहीं और न करुणाजनक कोई बात ही कही । लेकिन बाड़ों में बन्द पशुओं को देखकर उनके मन में करुणा की एक धारा- सी बह चली और आर्तनाद करते हुए सभी पशु-पक्षियों को बाड़ों एवं पिजरों से मुक्त करवा दिया और स्वयं मुनि धर्म अपना लिया । इसका कारण और कुछ नहीं कहा जा सकता सिर्फ इसके कि पंचेन्द्रिय पशुओं की छटपटाहट, करुणकन्दन आदि से ये प्रभावित हुए और एकेन्द्रिय अप्काय जीवों का विनाश उन पर कोई प्रभाव नहीं डाल हविप्रो, hasta मंगल | दिव्वजुयल परिहिश्रो, श्राभरणेहि विभूसिभो ॥ ६ ॥ १. सव्वीस हीहि - उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २२. निज्जंतो दिस्स पाणे भयदुए । · वाडहि पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुदुक्खिए ।। १४ । ग्रह सारही तो भइ, एए भद्दा उ पाणिणो । तुझं विवाहकज्जम्मि, भोयावेउं बहुं जणं ।। १७ ।। सोऊण तस्स वयणं, बहुपाणिविलासणं । चितेइ से महापन्ने, साणुक्कोसे जिए हिउ ।। १८ ।। जई मज्झ कारणा एए, हम्मंति सुबहू जिया । न ने एयं तु निस्सेसं, परलोगे भविस्सई ॥ १६ ॥ २. ग्रह सो तत्थ Jain Education International - उत्तराध्ययन सूत्र, अ० २२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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