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________________ जैन दृष्टि से हिंसा १५७ दूसरा व्यक्ति जो एक आदमी की हत्या कर देता है, बराबर समझा जाता, बल्कि ईख तोड़नेवाला ही अधिक अपराधी समझा जाता क्योंकि वह चार ईख तोड़ता है और आदमी की हत्या करनेवाला सिर्फ एक ही व्यक्ति यानी एक ही जीव की हिंसा करता है । लेकिन ऐसा कभी नहीं देखा गया है कि ईख उखाड़नेवाले के बजाय आदमी की हत्या करनेवाला कम दोषी ठहराया गया हो । हिंसा भावप्रधान है, यद्यपि हिंसा के प्रधानतौर से दो रूप माने गये हैं-भाव हिंसा और द्रव्य हिंसा । अर्थात् हिंसक की भावना के आधार पर यह जाना जाता है कि हिंसक कहाँ तक दोषी है अथवा निर्दोष । और यह भी सर्वविदित है कि हिंसा की मूलभित्ति कषाय है— क्रोध, लोभ, मान, माया । कषाय के होने से ही हिंसा होती है और न होने से हिंसा नहीं होती है । कषाय की मात्रा जितना ही अधिक होगी हिंसा का स्तर उतना ही ऊँचा होगा और कषाय की मात्रा जितनी ही कम होगी हिंसा का स्तर उतना ही नीचा होगा । इस प्रकार हिंसा के स्तर को निर्धारित करने के दो साधन हुए - जीव का आपसी अन्तर तथा कषाय की मात्रा । किसी एकेन्द्रिय जीव की हत्या होती है तो हत्या के समय उस जीव की ओर से न किसी प्रकार की दुःखद भावना व्यक्त होती है और न कोई प्रतिकार ही होता है । अत: उसकी हत्या में हत्यारे वा हिंसक के मन में कोई विशेष प्रमाद नहीं आता । किन्तु जैसे-जैसे एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय की ओर बढ़ते हैं वैसे-वैसे हिंसक के मन में पैदा होनेवाले कषायों की मात्रा बढ़ती जाती है । यदि किसी पंचेन्द्रिय की हत्या करना कोई चाहता है तो वह जीव बचने का प्रयास करता है, हत्या करनेवाले को भी मारना चाहता है, छटपटाता है, चिल्लाता है, चिघाड़ता है, अतएव मारनेवाले को उस जीव की हत्या करने के लिए अपने दिल को अधिक कठोर बनाना पड़ता है, अधिक उपकरणों का प्रयोग करना पड़ता है । ऐसी बात एकेन्द्रिय जीव की हत्या में नहीं होती । इसका ज्वलन्त उदाहरण हमें नेमिनाथ ( बाईसवें तीर्थङ्कर ) के जीवनचरित्र में मिलता है । जब नेमिनाथ की शादी ठीक हुई, बारात प्रस्थान के पहले उन्हें सभी औषधियों से मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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