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________________ जैन दृष्टि से अहिंसा १५३ आचारांग के अलावा सुत्रकृतांग,१ प्रश्नव्याकरण सत्र,२ दशवकालिक सूत्र, प्रवचनसार मूलाचार आदि में षटकायों की हिंसा की चर्चाएँ मिलती हैं। हिंसा के विभिन्न कारण : प्रश्नव्याकरण सूत्र में हिंसा के निम्नलिखित कारणों के उल्लेख हैं-६ पृथ्वीकाय-करिसण-कृषि, पृथ्वी को जोतना; पोक्खरणी-- पुष्करणी यानी तालाब; वावि--वापी, बावड़ी, वप्पिणि--क्यारी, नाली; कूव--कूप; सर--सरोवर; तलाग--तालाब या तड़ाग; चिइ--दीवाल के निमित्त; वेइय--वेदी; खाइय--खाई; आराम-- आराम के निमित्त या बगीचा; विहार--मठ; थूभ--स्तूप; पागार--प्राकार, कोट के निमित्त; द्वार--द्वार के निमित्त; गोउर--गोपुर; अट्टालग---अटारी; चरिया--चरिका नगर और कोट के बीच का मार्ग; सेतु--पुल; संकम--ऊँची-नीची भूमि को पार करने का मार्ग; पासाय--प्रासाद, राजमहल; विकप्पविकल्प, एक प्रकार का राजमहल; भवण-भवन; घर-गह; सरण--सामान्य, तृण आदि का मकान; लेण--पर्वतवर्ती पाषाणगृह, पर्वत काटकर बनाये जानेवाले मकान; आवण--दुकान चेइय--चैत्य के निमित्त; देवकुल--देवालय; चित्तसभा--चित्रसभा; पवा--प्याऊ; आयतन--यज्ञशाला, देवस्थान; आवसह--- अवसथ-तापसों के आश्रम, मठ; भूमिधर--भूमिगृह; मंडवाण-- मण्डप; तथा भायण--भंडोवगरणस्स अट्ठाय--मिट्टी के विभिन्न प्रकार के बर्तनों के लिए अज्ञानी जीव पृथ्वी काय जीव का घात करते हैं। १. सूत्रकृतांग, द्वितीय खण्ड, अध्ययन ७, सूत्र १, २, ७, ८, १०, १६, १६. २. प्रश्नव्याकरण सूत्र, प्र.श्रु०, पाश्रवद्वार, अध्ययन १. ३. दशवकालिक सूत्र, चतुर्थ अध्ययन, षड्जीवनिकाय । ४. प्रवचनसार, अध्याय ३, गाथा ४६. ५. मूलाचार, पंचाचाराधिकार, गाथा २०५-२२५. ६. प्रश्नव्याकरण सूत्र, प्र.श्रु०, आश्रवद्वार, अध्याय १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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