SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहिंसा-संबंधी जैन साहित्य १३७ होते हुए यानी अहिंसा दिव्रत न करते हुए भी नरक-तिर्यञ्च आदि गति को प्राप्त नहीं करते।' ___ तृतीय अध्ययन में बताया गया है कि जब मोह रूपी अन्धकार दूर हो जाता है, तब सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान के प्रकाश में साधु राग-द्वेष की निवत्ति के लिए 'चरण' यानी अहिंसादि सम्यकचारित्र को अपनाता है, क्योंकि रागद्वेष की निवृत्ति हिंसा आदि की निवर्तना से होती है, और हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन तथा परिग्रह रूपी पापों को त्यागना ही सम्यक्चारित्र होता है। आगे इस अध्ययन में अणुव्रत के लक्षणों को प्रस्तुत किया गया है। इतना ही नहीं यह अध्ययन अहिंसा व्रत को पालनेवाले कुछ प्रसिद्ध लोगों के नाम भी प्रस्तुत करता है, जैसे-मातंग, धनदेव, वारिषेण, नीली, जय, धनश्री, सत्यघोष, तापस, आरक्षक, श्मश्रुनवनीत आदि । चतुर्थ अध्ययन भी अहिंसादि पांच महाव्रतों के लक्षण बताता हुआ दिग्वत तथा उसके अतिचार पर प्रकाश डालता है।" पंचम अध्ययन में देशावकाशिकव्रत, सामायिकवत, प्रोषधोपवास आदि के विधानों की चर्चा हुई है। समय की मुक्तिपर्यन्त जो १. वरोपलिप्सयाऽऽशावान् राग-द्वेषमलीमसाः । देवता यदुपासीत देवतामूढ़मुच्यते ॥ २३ ॥ सग्रन्थाऽऽरम्भ-हिंसानां संसाराऽऽवर्त-वर्तिनाम् । पाषण्डिनां पुरस्कारो ज्ञेयं पाषण्डि-मोहनम् ॥ २४ ॥ सम्यग्दर्शनशुद्धा नारक-तियंङ-नपुंसक-स्त्रीत्वानि । दुष्कुल-विकृताऽल्पायुदरिद्रतां च व्रजन्ति नाऽप्यतिकाः ॥ ३५ ॥ २. कारिका ४७-४६. ३. कारिका ५२-५४. ४. मातंगो धनदेवश्च वारिषेणस्ततः परः । नीली जयश्च सम्प्राप्ताः पूजाऽतिशयमुत्तमम् ।। ६४ ॥ धनश्री-सत्यघोषौ च तापसाऽऽरक्षकावपि । उपाख्येयास्तथाश्मश्रुनवनीतो यथाक्रमम् ।। ६५ ।। ५. कारिका ७२, ७४-८१, ८४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy