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________________ जैन धर्म में अहिंसा अष्टम अध्ययन--इस अध्ययन में आचार एवं त्यागमय जीवन का वर्णन है। इस में आठ उद्देशक हैं । षष्ठ उद्देशक में एकत्व की भावना को प्रधानता देते हुए निर्देशित किया गया है ___"जिस भिक्षु का इस प्रकार का अध्यवसाय होता है कि मैं अकेला हूँ, मेरा कोई नहीं है और न मैं भी किसी का हूँ । इस प्रकार वह भिक्षु एकत्व भावना से सम्यक्तया आत्मा को जाने। क्योंकि आत्मा में लाघवता को उत्पन्न करता हुआ वह तप के सम्मुख होता है। अतः वह सम्यक्तया समभाव को जाने । जिससे वह आत्मा का विकास कर सके ।'' नवम अध्ययन-इसमें भगवान महावीर के तपपूर्ण जीवन का वर्णन है । इसके चार उद्देशकों में क्रमशः महावीर के विहार, शय्या, परीषह एवं आतंक आदि की चर्चा है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध-इसकी पांच चूलाओं में अन्तिम चला आचारप्रकल्प अथवा निशीथ को आचारांग से किसी समय पृथक् कर दिया गया, जिससे आचारांग में अब केवल चार चूलाएं ही रह गई हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में आने वाले विविध विषयों को एकत्र करके शिष्यहितार्थ चूलाओं में संगृहीत कर स्पष्ट किया गया है। इनमें कुछ अनुक्त विषयों का भी समावेश कर दिया गया है। इस प्रकार, इन चलाओं के पीछे दो प्रयोजन थे-उक्त विषयों का स्पष्टीकरण तथा अनुक्त विषयों का ग्रहण । २ तुलनात्मक दृष्टि से द्वितीय श्रुतस्कन्ध की अपेक्षा प्रथम श्रुतस्कन्ध प्राचीन और मौलिक है । अपने मौलिक रूप में सिर्फ प्रथम स्कन्ध ही था लेकिन भद्रबाह ने आचारांग पर नियुक्ति लिखने के समय बाद वाला भाग यानी द्वितीय श्रुतस्कन्ध उसमें बढ़ा दिया। इसकी प्रथम चूला में सात अध्ययन हैंपिंडैषणा, शय्यषणा, ईर्या, भाषाजात, वस्त्रषणा, पात्रषणा और अवग्रहप्रतिमा। ईर्या नामक तृतीय अध्ययन में साधु-साध्वी के गमनागमन-सम्बन्धी शुद्धि-अशुद्धि पर विचार प्रकट किये गये हैं १. वही, पृष्ठ ५६५. २. प्राकृत और उसका साहित्य-डा० मोहनलाल मेहता, पृष्ठ ६. ३. प्राकृत साहित्य का इतिहास-डा. जगदीशचन्द्र जैन, पृष्ठ ४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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