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________________ जैन धर्म में महिंसा जिसके दो भाग हैं-ताओ और तेह । इन्हीं दो भागों में लाओत्से के वास्तविक उपदेश प्राप्त होते हैं । ___लाओत्से ने जीवन की सरलता पर सबसे ज्यादा जोर दिया है । जीवन को सही ढंग से व्यतीत करने के लिए उन्होंने जो राह दिखाई है उसके ये सब संबल प्रधान हैं : १. कार्य करना पर उसके कर्त्तापन पर विचार न करना। २. कर्म करना पर उससे उत्पन्न दुःख-दर्द को महसूस न करना। ३. भोजन ग्रहण करना पर उसके अच्छे-बुरे स्वाद पर विचार न करना। ४. छोटे को भी बड़ा समझना। ५. थोड़े को भी अधिक समझना। ६. हिंसा से उत्पन्न घाव पर प्यार का मरहम और दया की पट्टी लगाने का भाव रखना। यहां तक कि राजनैतिक जीवन में भी खून-खराबी हो, इसका लाओत्से ने विरोध किया है। उनका कथन है कि जो बादशाह जनता की निर्मम हत्या में विश्वास करता है या दूसरों की हत्या में आनन्द लेता है, वह कभी-भी एक सफल एवं कुशल शासक नहीं समझा जा सकता।' कनफ्यूशियस परम्परा अपने जन्मदाता कनफ्यूशियस के नाम से ही प्रसिद्ध है । कनफ्यूशियस का जन्म चुफु ( Chufu ) गांव में शु-लियांग-हो ( Shu-Liang-Ho) के पुत्र के रूप में ईसा पूर्व सन् ५५१ में हुआ था। उनका वास्तविक नाम कंग-फु-त्जे कंग ( K'ung-fu-tze-Kung ) था। किन्तु प्रथम पाश्चात्य यात्री, जिसने यूरप से चीन की यात्रा की थी, ने उनके नाम का सही उच्चारण न करने के कारण लैटिन ( Latin) भाषा में उसे कनफ्यूशियस (Confucius ) के रूप में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने कोई नया धर्म या नीति नहीं दी किन्तु पहले से आते हुए 1. Great Asian Religions, p. 154. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002125
Book TitleJain Dharma me Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasistha Narayan Sinha
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2002
Total Pages332
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size13 MB
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