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निश्चयनय । ४५
इसलिए जिनेन्द्र भगवान् ने शुद्धोपयोगरूप वास्तविक मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग कहा है। उसे ग्रहण करने की सामर्थ्य सम्यक्त्वपूर्वक शुभोपयोग ( परद्रव्याश्रितसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र ) की साधना से आती है। इसलिए यद्यपि वह मोक्षमार्ग का नियतस्वलक्षण नहीं है, तथापि साध्यसाधकसम्बन्ध के कारण उसकी उपादेयता दर्शाने हेतु भगवान् ने उसे भी उपचार से मोक्षमार्ग नाम दिया है। इससे कोई शिष्य शुभोपयोग को वास्तविक मोक्षमार्ग समझने की भूल कर सकता है। अत: इस सम्भावना को टालने के लिए भगवान् ने नियतस्वलक्षणावलम्बिनी दृष्टि का अनुसरण करते हुए शुद्धोपयोग अथवा आत्माश्रित सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र की समष्टि को 'निश्चय' विशेषण के प्रयोग द्वारा वास्तविक मोक्षमार्ग निरूपित किया है, जिसे आचार्यों ने अपने शब्दों में इस प्रकार दर्शाया है -
णिच्चयणयेण भणिदो तिहि तेहिं समाहिदो हु जो अप्पा ।
ण कुणदि किंचिवि अण्णं ण मुयदि सो मोक्खमग्गोत्ति ।।'
- जो आत्मा निज शुद्धस्वरूप के सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्ज्ञान सहित उसी में निश्चलरूप से स्थित होता है, वह न तो किसी परभाव से ग्रस्त होता है, न स्वभाव को छोड़ता है। इसलिए वही निश्चयनय से मोक्षमार्ग है।
“निश्चयरत्नत्रयात्मकः शुद्धात्मानुभूतिलक्षणो मोक्षमार्गो मोक्षार्थिना पुरुषेण सेवितव्यः।
- मोक्षार्थी पुरुष को शुद्धात्मानुभूतिरूप निश्चयरत्नत्रयात्मक मोक्षमार्ग का अवलम्बन करना चाहिए।
__ “परमात्मतत्त्वश्रद्धानज्ञानानुभूतिरूपाणि सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग जिना विदन्ति।"
-निज परम आत्मतत्त्व के सम्यक् श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग् अनुभूति के रूप में जो सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्र हैं उन्हीं के समूह को जिनेन्द्रदेव ने मोक्षमार्ग कहा है।
इसके ही वास्तविक मोक्षमार्ग होने की पुष्टि के लिए आचार्यों ने यह स्पष्ट किया है कि अरहन्तदेव ने जो जीवादिपरद्रव्याश्रित सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप शुभोपयोग को मोक्षमार्ग संज्ञा दी है वह उपचारावलम्बी व्यवहारनय से दी है। यथा
१. पञ्चास्तिकाय/गाथा, १६१ २. समयसार/तात्पर्यवृत्ति/गाथा ४१२ ३. वही/तात्पर्यवृत्ति/गाथा, ४१०
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