SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ / जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन गत भेद भी पर्याय है।' परद्रव्य के साथ निमित्तनैमित्तिकादि सम्बन्ध भी पर्याय हैं। यत: निश्चय और व्यवहार के विषयभूत उपर्युक्त पदार्थ द्रव्य और पर्याय में गर्भित होते हैं, अत: आचार्यों ने संक्षेप में द्रव्य का अवलम्बन कर वस्तुस्वरूप का निर्णय करनेवाली ज्ञाता की दृष्टि को निश्चयनय तथा पर्याय का अवलम्बन कर निर्णय करनेवाली दृष्टि को व्यवहारनय संज्ञा दी है - “निश्चयनयस्तु द्रव्याश्रितत्वात् । व्यवहारनयः किल पर्यायाश्रितत्वात् ...।" निश्चय और व्यवहार के पूर्वोक्त विषयों को पृथक्-पृथक् लेकर इन नयों की परिभाषाएँ इस प्रकार की गई हैं - “अभेदानुपचारतया वस्तु निश्चीयत इति निश्चयः। भेदोपचारतया वस्तु व्यवह्रियत इति व्यवहारः।" - मौलिक ( प्रदेशगत ) अभेद और नियतस्वलक्षण ( अनुपचार ) के आधार पर वस्तु का निश्चय करनेवाली दृष्टि निश्चयनय है तथा संज्ञादिगत बाह्य भेद और उपचार के आधार पर निर्णय करनेवाली दृष्टि व्यवहारनय। “निश्चयनयोऽभेदविषयो, व्यवहारो भेदविषयः।४ - निश्चयनय का विषय प्रदेशगत अभेद है और व्यवहारनय का विषय संज्ञादिगत भेद। अर्थात् मौलिक अभेद का अवलम्बन कर वस्तुस्वरूप का निर्णय करनेवाली दृष्टि का नाम निश्चयनय और बाह्यभेद का अवलम्बन कर निर्णय करनेवाली दृष्टि का नाम व्यवहारनय है। “भिन्नवस्तुसम्बन्धविषयोऽसद्भूतव्यवहारः।"५ -भिन्न वस्तुओं का सम्बन्ध असद्भूत व्यवहारनय का विषय है। यहाँ परद्रव्यसम्बन्ध के आधार पर वस्तुस्वरूप का निर्णय करनेवाली ज्ञाता की दृष्टि को 'असद्भूतव्यवहारनय' शब्द से संकेतित किया गया है। ___"आत्माश्रितो निश्चयनयः, पराश्रितो व्यवहारनयः।" -निश्चयनय आत्माश्रित है, व्यवहारनय पराश्रित। १. “ववहारो य वियप्पो भेदो तह पज्जओ त्ति एयट्ठो।' गोम्मटसार/जीवकाण्ड/गाथा ५७२ २. समयसार/आत्मख्याति/गाथा, ५६ ३. आलापपद्धति/सूत्र २०४-२०५ ४. वही/सूत्र २१६ ५. वही/पादटिप्पणी/द्रव्यस्वभावप्रकाशकनयचक्र/पृष्ठ २२८ ६. समयसार/आत्मख्याति/गाथा, २७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy