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________________ द्वितीय अध्याय निश्चयनय ज्ञाता की जो दृष्टि स्वतःसिद्ध मूलपदार्थ, मूलस्वभाव, मौलिक भेद, मौलिक अभेद, नियत स्वलक्षण एवं आत्माश्रित भाव के आधार पर वस्तुस्वरूप का निर्णय करती है उसे निश्चयनय कहते हैं तथा जो सोपाधिक ( संयुक्त ) पदार्थ, औपाधिक ( नैमित्तिक ) भाव, स्वभावविशेष ( विशिष्ट स्वभाव ), बाह्यभेद, बाह्य सम्बन्ध, पराश्रितभाव एवं उपचार के आधार पर निर्णय करती है वह व्यवहारनय कहलाती है। मूल पदार्थ से तात्पर्य है परद्रव्य से असम्बद्ध, परसंयोगादि से अनुत्पन्न, स्वतःसिद्ध, स्वतन्त्र पदार्थ। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छ: मूल पदार्थ हैं, क्योंकि ये परसंयोगादि से रहित, स्वत:सिद्ध एवं स्वतन्त्र हैं।' इन्हें द्रव्य भी कहते हैं। मूलस्वभाव का अर्थ है वस्तु का वह असाधारण स्वभाव जो उसके गुण नामक विशिष्ट स्वभावों में व्याप्त होता है और जिसके कारण वे गुण द्रव्यविशेष के गुणों के रूप में पहचाने जाते हैं। जैसे चैतन्यभाव आत्मा का असाधारण स्वभाव है। वह आत्मा के दर्शन, ज्ञान, चारित्रादि गुणों में व्याप्त होता है और उसके ही कारण दर्शनज्ञानचारित्रादि आत्मा के गुणों के रूप में पहचाने जाते हैं। अत: चैतन्यभाव आत्मा का मूलस्वभाव है। मौलिक भेद से अभिप्राय है स्वभाव या प्रदेशों ( सत्ता ) का भिन्न-भिन्न होना और उनका अभिन्न होना मौलिक अभेद कहलाता है। जो धर्म वस्तूविशेष की सभी अवस्थाओं में तथा उस जाति की सभी वस्तुओं में पाया जाता है, अन्य किसी वस्तु में उपलब्ध नहीं होता, वह उस वस्तु का नियत-स्वलक्षण कहलाता है। स्वात्मा के श्रद्धानादि को आत्माश्रित भाव कहते पुद्गलसंयुक्त जीव और पुद्गलसंयुक्त पदगल सोपाधिक पदार्थ हैं। पदगल की उपाधि या निमित्त से उत्पन्न जीव के परिणाम तथा जीव के निमित्त से उत्पन्न पुद्गल के परिणाम औपाधिक या नैमित्तिक भाव कहलाते हैं। पुण्य, पाप, आस्रव, १. “इति भेदात्मकत्वात् पर्यायप्रधानेन व्यवहारनयेन निर्णयो भवति।" प्रवचनसार/तात्पर्यवृत्ति, ३/४२ २. “इमौ हि जीवाजीवौ पृथग्भूतास्तित्वनिर्वृत्तत्वेन भिन्नस्वभावभूतौ मूलपदार्थी।" पञ्चास्तिकाय/तत्त्वदीपिका/गाथा १०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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