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________________ [ पच्चीस ] अध्याय पृष्ठांक २१९ २२१ २२१ २२२ २२३ २२४ २२५ २२५ २२८ २३० २३३ २३४ سه نسه निमित्तभाव स्वभावगत निमित्त के बिना कार्य असम्भव अन्वयव्यतिरेक की अपेक्षा 'निमित्त' संज्ञा कालप्रत्यासत्ति का अभिप्राय । अन्यवस्तु में कोई धर्म उत्पन्न करना निमित्त का लक्षण नहीं निश्चय से निषेध का अर्थ सर्वथा निषेध नहीं द्विक्रियाकारिता का प्रसंग नहीं निमित्त से स्वतन्त्रता बाधित नहीं होती अशुद्धोपादानजन्य कार्य निमित्तप्रेरित कर्म प्रेरक निमित्त ही हैं स्वपरप्रत्यय-परिणमन मोहादिप्रकृतिक कर्म ही चिद्विकार के हेतु प्रेरक ही नहीं, आक्रामक और घातक कर्म अजेय नहीं द्वादश : निश्चयाभास एवं व्यवहाराभास निश्चयाभास व्यवहाराभास उभयाभास एकान्तवादियों का इतिहास एकान्तवाद के हेतु अनेकान्तसिद्धान्त से अनभिज्ञता नयस्वरूप से अनभिज्ञता सापेक्षता से अनभिज्ञता दोषपूर्ण व्याख्याएँ एकान्तप्रवचन सांकेतिक भाषा का प्रयोग सांकेतिक भाषा और स्पष्ट भाषा के उदाहरण सन्दर्भग्रन्थसूची २४० २४२ २४३ २४५ २४६ २४६ २४७ २४७ २४८ २४९ २५३ २५४ २५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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