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________________ द्वादश अध्याय निश्चयाभास एवं व्यवहाराभास पूर्व में इस तथ्य का अवलोकन किया गया है कि निश्चयनय और व्यवहारनय परस्परसापेक्ष हैं, अर्थात् दोनों मिलकर ही आत्मादि पदार्थों के अनेकान्तस्वरूप का निरूपण करते हैं तथा दोनों नयों के द्वारा प्ररूपित साधनापद्धतियों का आवश्यकतानुसार आश्रय लेने से ही मोक्ष की सिद्धि होती है। किन्तु निश्चय और व्यवहार नयों के स्वरूप को सम्यग्रूपेण हृदयंगम न कर पाने से जैन सिद्धान्त के अनुयायी भी किसी एक ही नय के कथन को सर्वथा सत्य मानकर एकान्तवादी बन जाते हैं। यह एक विडम्बना ही है कि जो जैनसिद्धान्त अनेकान्तवादी है और स्याद्वाद के द्वारा विश्व के सभी युक्तिसंगत मतों का समन्वय करता है उसे भी लोग एकान्तवादी मान्यताओं से दूषित कर देते हैं। आचार्यद्वय अमृतचन्द्र एवं जयसेन ने पञ्चास्तिकाय/गाथा १७२ की टीकाओं में दो प्रकार के जैनएकान्तवादियों का उल्लेख किया है : केवलनिश्चयावलम्बी और केवलव्यवहारालम्बी। तथा पंडित टोडरमल जी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ मोक्षमार्गप्रकाशक में तीन एकान्तवादों या नयाभासों का अवलम्बन करनेवाले जैनमिथ्यादृष्टियों का विवरण दिया है। वे तीन एकान्तवाद निम्निलिखित हैं : निश्चयैकान्त, व्यवहारैकान्त तथा उभयैकान्त। इन्हें क्रमश: निश्चयाभास, व्यवहाराभास एवं उभयाभास भी कहते हैं। निश्चयाभास व्यवहारनय के कथन को सर्वथा असत्य मानकर निश्चयनय के कथन को एकान्तत: सत्य स्वीकार करना निश्चयैकान्त या निश्चयाभास कहलाता है। इसके कुछ उदाहरण मोक्षमार्गप्रकाशक के आधार पर यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं। आगम में संसारी जीव को निश्चयनय से अर्थात् द्रव्यदृष्टि से सिद्धों के समान शुद्ध कहा गया है और व्यवहारनय से अर्थात् पर्यायदृष्टि से अशुद्ध ( रागादिमय )। किन्तु व्यवहारनय को सर्वथा असत्य माननेवाले अपने को पर्याय की अपेक्षा अशुद्ध नहीं मानते और निश्चयनय के कथन को द्रव्य और पर्याय दोनों द्रष्टियों से सत्य मानकर स्वयं को सर्वथा ( द्रव्य और पर्याय दोनों की अपेक्षा ) शुद्ध ( रागादिभावरहित ) समझते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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