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अध्याय
[ तेईस ]
निश्चयनय के द्वारा शरीरादि में आत्मादिबुद्धि का विनाश व्यवहारनय के द्वारा सर्वथा शुद्धत्व की मिथ्याबुद्धि का विनाश
साध्यसाधकरूप से भी परस्परसापेक्ष सापेक्षताविरोधी मत का निराकरण
अष्टम : निश्चय व्यवहारमोक्षमार्गों में साध्यसाधक भाव साध्यसाधकभाव के शास्त्रीय प्रमाण
व्यवहारमोक्षमार्ग की वैज्ञानिक भूमि
प्राथमिक भूमिका में केवल पाप से निवृत्ति सम्भव पुण्यनिवृत्तियोग्य अवस्था की प्राप्ति
एकदेशनिवृत्ति विशुद्धपरिणामपूर्वक
लक्ष्य की भिन्नता से शुभोपयोग के फल में भिन्नता मोक्षोन्मुख शुभोपयोग से मिथ्यात्व का उपशम सम्यक्त्वपूर्वक शुभोपयोग से अप्रत्याख्यानावरणादि का क्षयोपशम
उपादान नहीं, निमित्तमात्र
प्राप्तभूमिका को निर्दोष रखने में सहायक
विशुद्धता के विकास में शुभोपयोग की मनोवैज्ञानिकता
निमित्त - परिवर्तन से कर्मोदय में परिवर्तन
संयम, तप, अपरिग्रह की मनोवैज्ञानिकता भक्ति की मनोवैज्ञानिकता स्वाध्याय की मनोवैज्ञानिकता
क्षमा-समता - अहिंसादि की मनोवैज्ञानिकता
नवम : साध्यसाधकभाव की भ्रान्तिपूर्ण व्याख्याएँ
भ्रान्तिपूर्ण व्याख्याओं का निराकरण
व्यवहारधर्म निश्चयधर्म की सामर्थ्य का जनक रोग की अल्पता से रोगनिवृत्ति सुकर ग्रहण और त्याग दोनों आवश्यक व्यवहारधर्म आंशिक शुद्धि का हेतु सम्यग्दृष्टि के शुभोपयोग में धर्म का अंश मात्र पुण्यबन्ध नहीं, परम्परया मोक्ष भी
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