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________________ अध्याय परद्रव्य के साथ ज्ञेयज्ञायकसम्बन्ध का निश्चय परद्रव्य के साथ साध्यसाधकसम्बन्ध का निश्चय परद्रव्य के साथ आधाराधेयसम्बन्ध का निश्चय असद्भूतव्यवहारनयात्मक उपदेश के प्रयोजन संसारपर्याय का उपपादन हिंसा के सद्भाव का उपपादन स्तेयादि के सद्भाव का उपपादन बन्धमोक्ष की प्रक्रिया का उपपादन मोक्ष की आवश्यकता का उपपादन मोक्षमार्ग की साध्यता का उपपादन सर्वज्ञत्व का उपपादन धर्मादि द्रव्यों के लक्षण का उपपादन अभूतार्थता का अभिप्राय [ इक्कीस ] चतुर्थ : उपचारमूलक असद्भूतव्यवहारनय उपचार का अर्थ उपचार : एक लोकव्यवहार निमित्त और प्रयोजन पर आश्रित व्याकरण और काव्यशास्त्र में उपचार उपचारमूलक असद्भूतव्यवहारनयात्मक उपदेश के प्रयोजन अननुभूत अतीन्द्रिय तत्त्व का द्योतन अभेदविशेष का द्योतन लौकिकसम्बन्ध का द्योतन बन्ध - मोक्ष में जीवस्वातन्त्र्य का द्योतन विषयभोक्तृत्व का उपपादन संयोग-वियोग-प्रयोजकत्व का द्योतन साधर्म्यविशेष का द्योतन अपरमार्थ होते हुए भी परमार्थप्रतिपादक वस्तुधर्म का प्रतिपादक उपचार और अज्ञानियों के व्यवहार में अन्तर हेय होने का अभिप्राय पञ्चम : सद्भूतव्यवहारनय लक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only पृष्ठांक ८१ ८१ ८२ ८३ ८३ ८३ ८५ ८५ ८५ ८६ w w 3 ८६ ८६ ८७ ८८ ८८ ८९ ९० ९२ ९२ ९३ ९३ ९४ ९५ ९७ ९९ १०२ १०२ १०४ १०८ १११ www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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