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________________ अध्याय पर से साध्यसाधकसम्बन्ध का निषेध पर के साथ आधाराधेयसम्बन्ध का निषेध मौलिक - अभेदावलम्बिनी दृष्टि से आत्मस्वरूप का निर्णय धर्म-धर्मी में भिन्नत्व का निषेध नियतस्वलक्षणावलम्बिनी दृष्टि से वस्तुस्वरूप का निर्णय चैतन्यभाव की जीव संज्ञा शुद्धोपयोग की मोक्षमार्ग संज्ञा स्वात्मश्रद्धानादि की सम्यग्दर्शनादि संज्ञाएँ रागद्वेषमोह की आस्रव - बन्ध संज्ञाएँ रागद्वेषमोहाभाव की संवर संज्ञा शुद्धोपयोग की निर्जरा संज्ञा क्षायिकसम्यग्दर्शनादि की मोक्ष संज्ञा रागादि के अभाव की अहिंसादि संज्ञाएँ शुभाशुभपरिणामनिवृत्ति की व्रत संज्ञा शुद्धात्मस्वरूप में अवस्थान की समिति आदि संज्ञाएँ शुद्धात्मपरिणति आदि की निःशङ्का आदि संज्ञाएँ हसने आदि की हास्यादि संज्ञाएँ [ बीस ] आत्माश्रितभावावलम्बिनी दृष्टि से मोक्षमार्ग का निर्णय निश्चयनयात्मक उपदेश के प्रयोजन मिथ्या धारणाओं का विनाश सम्यक् धारणाओं की उत्पत्ति स्वपद का निश्चय मनःस्थिति में परिवर्तन तृतीय : असद्भूतव्यवहारनय व्यवहारनय का लक्षण, असद्भूत एवं सद्भूत के विषय असद्भूतव्यवहारनय के भेद उपाधिमूलक असद्भूतव्यवहारनय बाह्यसम्बन्धमूलक असद्भूतव्यवहारनय जीव और पुद्गल के संश्लेषसम्बन्ध का निश्चय जीव और शरीर के कथंचित् अभेद का निश्चय परद्रव्य के साथ निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध का निश्चय परद्रव्य के साथ संयोगसम्बन्ध का निश्चय Jain Education International For Private & Personal Use Only पृष्ठांक ३६ ३८ ३९ ४० ४२ ४३ ४४ ४६ ४७ ४८ ४८ ४९ ४९ ५३ ५४ ५६ ५८ ५९ ६१ ६१ ६५ ६६ ६७ ६८ ६९ 1m m 5 2 9 ६९ ७३ ७३ ७५ ७७ ८० www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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