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________________ प्रस्तावना डॉ॰ रतनचन्द्र जी श्रीगणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर में मेरे शिष्य रहे हैं। इनके पिता माननीय पण्डित बालचन्द्र जी जैनसिद्धान्त के जानेमाने विद्वान् एवं प्रतिष्ठाचार्य थे। रतनचन्द्र जी ने निश्चय और व्यवहार नयों का गहन अध्ययन, मनन और चिन्तन किया है । सन् १९८० में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् की ओर से 'मोक्षमार्ग में निश्चय और व्यवहार की उपयोगिता' विषय पर एक महानिबन्ध प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। डॉ. रतनचन्द्र जी ने लगभग दो सौ पृष्ठों का निबन्ध लिखा था । जैनविद्वज्जगत् के मूर्धन्य विद्वान् पं० वंशीधर जी व्याकरणाचार्य, डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया और पं० नाथूलाल जी शास्त्री निर्णायक थे । प्रतियोगिता में डॉ. रतनचन्द्र जी का निबन्ध सर्वोत्कृष्ट घोषित किया गया था और वे विद्वत्परिषद् द्वारा पुरस्कृत किये गये थे। प्रस्तुत ग्रन्थ 'जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय : एक अनुशीलन' उनके द्वारा पीएच. डी. उपाधि के लिए लिखे गये शोध-प्रबन्ध का परिवर्धित और परिमार्जित रूप है। सन् १९८० में सागर ( म. प्र. ) में षट्खण्डागम - वाचना के समय लेखक ने अपना शोध-प्रबन्ध परमपूज्य आचार्य विद्यासागर जी को पढ़कर सुनाया था। वे सुनकर सन्तुष्ट हुए थे। उन्होंने कुछ संशोधनों और नवीन तथ्यों के समावेश का भी सुझाव दिया था, जिनका समावेश करने पर प्रबन्ध का अपेक्षित परिष्कार हो गया। परिष्कृत और परिवर्धित होकर वह जिस रूप में आया है उससे वह निश्चय और व्यवहार नयों के विविध आयामों की आगमानुकूल विवेचना करनेवाला उत्कृष्ट ग्रन्थ बन गया है। ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय बारह अध्यायों में विभाजित है, जिनके नाम इस प्रकार हैं – निश्चय और व्यवहार नयों की पृष्ठभूमि, निश्चयनय, असद्भूतव्यवहारनय, उपचारमूलक असद्भूतव्यवहारनय, सद्भूतव्यवहारनय, व्यवहारनय के भेद, निश्चय और व्यवहार की परस्परसापेक्षता, निश्चय-व्यवहार- मोक्षमार्गों में साध्य - साधक भाव, साध्य-साधक भाव की भ्रान्तिपूर्ण व्याख्याएँ, मोक्षमार्ग की अनेकान्तात्मकता, उपादान-निमित्तविषयक मिथ्याधारणाएँ, तथा निश्चयाभास एवं व्यवहाराभास। इस प्रकार ग्रन्थ का विषय वैविध्यपूर्ण और नवीन है तथा प्रस्तुतीकरण विश्लेषणात्मक एवं समीक्षात्मक है। प्रस्तुतीकरण में अनेक नवीनताएँ दिखाई देती हैं । यथा, निश्चय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002124
Book TitleJain Darshan me Nischay aur Vyavahar Nay Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size12 MB
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