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[ नौ ]
विद्वानों की इन परस्परविरोधी व्याख्याओं का सामान्य श्रावकों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, इसकी कल्पना सरलता से की जा सकती है। आत्मकल्याण की दिशा के विषय में जब शास्त्रविद् ही भ्रमित हों, तब जनसाधारण का दिग्भ्रमित होना स्वाभाविक ही है। आगमविदों द्वारा सिद्धान्त के भ्रान्तिपूर्ण एवं एकान्तात्मक प्रतिपादन से सामान्य श्रावक भी भ्रान्तिग्रस्त एवं एकान्तवादी होकर अहित के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं। विद्वानों के कारण श्रावकों में भी दो वर्ग बन गये हैं और उनमें एक-दूसरे के प्रति विरोध और कटुता की भावना घर कर गयी है। विचारधारा को लेकर वे एक-दूसरे पर आक्षेप करते हैं। अपने को सम्यग्दृष्टि और दूसरे को मिथ्यादृष्टि घोषित करते हैं। वे इतने दिग्भ्रामित हो गये हैं कि एक ओर व्यवहारैकान्त का अवलम्बन कर कुछ लोग बाह्य कर्मकाण्ड को ही जीवन में प्रधानता दे रहे हैं, तो दूसरी ओर श्रावकों का एक वर्ग निश्चयैकान्त से ग्रस्त होकर शुभोपयोग को हेय
और पुण्य को विष्ठा मानकर कोरी तत्त्वचर्चा को ही मोक्ष के लिए उपादेय मान रहा है। निश्चयाभास में फँसकर यह वर्ग आज के किसी भी मुनि को सच्चा मुनि नहीं मानता और उनकी अवज्ञा करने को धर्म सा मान बैठा है, यद्यपि ऐसे मुनियों की कमी नहीं है, जो निश्चय और व्यवहार का परस्परसापेक्षतापूर्वक अनुसरण करते हुए समीचीन मार्ग पर चल रहे हैं।
आज के कुछ विद्वानों द्वारा उत्पन्न किया गया यह विसंवाद अत्यन्त शोचनीय है। जिन तीर्थङ्कर महावीर ने विश्व के विभिन्न मतों में समन्वय स्थापित करने के लिए अनेकान्त और स्याद्वाद का उपदेश दिया था, उन्हीं के अनुयायियों में सिद्धान्तों को लेकर मतभेद और वैचारिक हिंसा उत्पन्न हो जाय, यह विडम्बना ही है।
इस अनिष्ट ने मेरे हृदय को बहुत आन्दोलित किया। फलस्वरूप मेरे मन में विचार उत्पन्न हुआ कि विद्वज्जनों के इन परस्परविरोधी मतों की आगम के आलोक में छानबीन की जाय, इन्हें युक्ति और प्रमाण की कसौटी पर कसकर परखा जाय
और निश्चय तथा व्यवहार नयों के आगमसम्मत अभिप्राय को सामने लाने का प्रयत्न किया जाय, जिससे श्रावक इन नयों के वास्तविक अभिप्राय को समझकर इनके द्वारा प्रतिपादित वस्तुस्वरूप को समीचीनतया ग्रहण कर सकें और पारस्परिक विरोध समाप्त कर अनेकान्तात्मक विचारमार्ग एवं अनेकान्सात्मक मोक्षमार्ग के अवलम्बन में समर्थ हों। इस विचार से मैंने पीएच. डी. उपाधि के लिए निश्चय और व्यवहार नयों के अनुशीलन को ही शोधकार्य का विषय सुनिश्चित किया।
इस अनुसन्धान-यज्ञ में मुझे अनेक प्राज्ञों ने अपने प्रज्ञामन्त्रों से अभिमन्त्रित किया है, उन सबका आभार मुझ पर है। शासकीय हमीदिया महाविद्यालय, भोपाल के संस्कृतविभागाध्यक्ष डॉ. रामकृष्ण जी सराफ ने शोध-प्रबन्ध लेखन में मुझे कुशल
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