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भारतीय परम्परा में योग
हठयोग में यम एवं नियमों के पालन का विधान है। और अनेक वस्तुओं को त्यागने का भी आदेश है। अर्थात् आचार एवं विचार को विशेष महत्त्व दिया गया है। इस प्रकार यम-नियमों का पालन करता हुआ हठयोगी स्थूल शरीर द्वारा अपनी शक्ति को अन्तर्मुखी बनाकर, सूक्ष्म शरीर को वश में करके चित्तनिरोध करता है और क्रमशः परमात्मा का साक्षात्कार करता है। यह पद्धति ही हठयोग है। नाथयोग __ नाथयोग के उद्भव के विषय में निश्चितरूपेण कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन माना जाता है कि इसका प्रारम्भ अथवा पुनर्स्थापन गोरखनाथ से हुआ है। गोरखनाथ का समय १०वीं अथवा ११वीं शती से पूर्व का है, जो इस सम्प्रदाय का समय माना जा सकता है । ऐसी धारणा है कि शिव ने मत्स्येन्द्रनाथ को योग की दीक्षा दी थी और मत्स्येन्द्रनाथ ने गोरखनाथ को। नाथपन्थीय परम्परा इस प्रकार मानी जाती है-आदिनाथ (शिव), मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ, गाहिनीनाथ, निवृत्तिनाथ एवं ज्ञानदेव ।" नाथ-सम्प्रदाय में मुख्यतः नौ नाथ माने गये हैं-गोरखनाथ, ज्वालेन्द्रनाथ, कारिणनाथ, गाहिनीनाथ, चर्पटनाथ, खेणनाथ, नागनाथ, भर्तनाथ तथा गोपीचन्दनाथ ।। यह पन्थ अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है, यथा-सिद्धमत, योगमार्ग, योग-सम्प्रदाय, अवधूत-सम्प्रदाय, अवधूतमत आदि । दीक्षा धारण करने के समय कान फड़वाकर कुण्डल धारण करने के कारण इन्हें कनफटा योगी भी कहते हैं।'
इस योगमार्ग का परमपद नाथ है । इस योगमार्ग की क्रियाएँ तथा
१. हठयोगप्रदीपिका, १०५७-६३ 2. Siddha Siddhanta Paddhati and Other Works of
Nath Yogis, p. 7 ३. Ibid. p. 10 ४. Gorakhnath and the Kanfata Yogis, pp. 235-36 ५. कबीर, पृ० ३८ ६. गोस्वामी, प्रथम खण्ड, वर्ष २४, अ० १२, १९६०, पृ० ९२ १७. कबीर की विचारधारा, पृ० १५३ ८. नाथ सम्प्रदाय, पृ० ५९
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