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आकर्षित हो रहे हैं। जैन योग भारतीय योग परम्परा को ही एक विशिष्ट धारा है जो आचारशुद्धि के साथ-साथ विवारशुद्धि पर भी बल देती है । भारतीय योग परम्परा के सम्यक् अध्ययन के लिए जेन योग का अध्ययन भी आवश्यक है। डॉ० अर्हददास बन्डोबा दिगे का जैन योग संबंधी यह शोध प्रबन्ध भारतीय योग परम्परा के अध्येताओं के लिए तो उपयोगी होगा ही साथ ही साथ उन लोगों के लिए भो अयोगो होगा जो जैन योग के सैद्धान्तिक परिचय के साथ-साथ अध्यात्म को साधना में आगे बढ़ना चाहते हैं ।
हम संस्थान के निदेशक डा. सागरमल जैन के भी आभारी हैं जिन्होंने ग्रन्थ के सम्पादन एवं प्रकाशन में पूरा सहयोग दिया। साथ हो हम शोधछात्र श्री रविशंकर मिश्र एवं श्री मंगल प्रकाश मेहता तथा एजुकेशनल प्रिंटर्स के प्रति भी आभारी हैं जिन्होंने इस ग्रन्थ के प्रूफरीडिंग एवं मुद्रण आदि कार्यों में सहयोग देकर इस प्रकाशन को सम्भव बनाया।
भूपेन्द्र नाथ जैन
मन्त्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान
वाराणसी
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