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: ७: योग का लक्ष्य : लब्धियाँ एवं मोक्ष
जैसा कि पहले बताया गया है, योगी तप, आसन, प्राणायाम, समाधि, ध्यान आदि द्वारा योग-सिद्धि करता है अथवा मोक्षाभिमुख होता है। साधना के क्रम में योग साधक चिरकाल से उपाजित पापों को वैसे ही नष्ट कर देता है, जैसे इकट्ठी की हुई बहुत-सी लकड़ियों को अग्नि क्षण भर में भस्म कर देती है। योग साधना के ही क्रम में अनेक चमत्कारिक शक्तियों का भी उदय होता है, जिन्हें लब्धियाँ कहते हैं। ये लब्धियाँ अलौलिक शक्तियों से सम्पन्न होती हैं, तथा सामान्य मानव को आश्चर्य में डालने वाली भी। वस्तुतः जिस साधक का अन्तिम उद्देश्य मोक्ष प्राप्ति ही होता है, वह भौतिक या चमत्कारिक लब्धियों के व्यामोह में नहीं फँसता । जैसे-जैसे योगी का मन निर्मल होता जाता है वैसे-वैसे उसमें समता, वैराग्य, सहनशीलता, परोपकार आदि सद्भावनाएँ जाग्रत होती जाती हैं। लेकिन जो साधक रागद्वेषादि भावनाओं के वश होकर रौद्र ध्यान द्वारा लब्धियाँ ( शक्तियाँ ) पाने की अभीप्सा रखते हैं वे आत्मसिद्धि के मार्ग से च्युत होकर संसार में भ्रमण करने लगते हैं। अतः लब्धियाँ मोक्षाभिमुख योगी के लिए बाधक ही सिद्ध होती हैं। इसलिए योगियों को आदेश है कि वे तप का अनुष्ठान किसी लाभ, यश, . कीर्ति अथवा परलोक में इन्द्रादि देवों जैसे सुख अथवा अन्य ऋद्धियाँ प्राप्त करने की इच्छा से न करें। इस प्रकार योग-साधना का ध्येय शुद्ध आत्मतत्त्व की प्राप्ति करना है और लब्धियाँ उस योगमार्ग के बीच आई हुई फलसिद्धि हैं, जो आत्मतत्त्व की प्राप्ति करने में बाधक भी बन सकती हैं।
१. क्षिणोति योगः पापानि, चिरकालाजितान्यपि ।
प्रचितानि यथैधांसि, क्षणादेवाशुशुक्षणिः । -योगशास्त्र, १७ णो इहलोगट्टयाए तवमहिट्ठिज्जा, णो परलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा । णो कित्तिवण्णसद्दसिलोगट्ठयाए, तवमहिट्ठिज्जा नण्णत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा।
-दशवैकालिक सूत्र, ९।४
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