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योग के साधन : ध्यान
१७९ विद्या कहा है, क्योंकि यह पंचपदों तथा पंचपरमेष्ठी के नाम से बना है। षोडशाक्षर मंत्र है--'अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः' । छ: अक्षर का जप है-'अरिहंत सिद्ध' । चार अक्षरवाला है-'अरिहंत'। दो अक्षरों का है 'सिद्ध' एवं एक अक्षर का है 'अ'।' इन मंत्रों का जप पवित्र मन से करना चाहिए, क्योंकि समस्त. कर्मो को दग्ध करने की शक्ति प्राप्त होती है । इसी तरह 'ऊँ, ह्रां ह्रीं, हूं, ह्री, हँ:' 'असिआउसा नमः' इस पंचाक्षरमयी विद्या का जप करने से साधक संसार के बंधन अर्थात् कर्मग्रंथियों को तोड़ देता है और एकाग्रचित्त से मंगल, उत्तम और शरण पदों का जप करता हुआ मोक्ष प्राप्त करता है । 'क्ष्वों' विद्या का जप करने का भी विधान है, जिसे भाल-प्रदेश पर स्थिर करके एकाग्र मन से चिन्तनमनन करने से कल्याण होता है। इस प्रकार साधक को कभी ललाट पर 'क्ष्वीं' विद्या का, तो नासान पर प्रणव ॐ का तथा कभी शून्य अथवा अनाहत" का अभ्यास करना चाहिए। इस प्रकार के ध्यान से अनेक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं तथा निर्मल ज्ञान का उदय होता है ।।
इस प्रकार पदस्थ ध्यान में चित्त को स्थिर करने के लिए पदों (बीजाक्षरों, मंत्राक्षरों) का आलम्बन लिया जाता है, और आत्मसमीप
१. वही, ३५१५०-५४ २. पंचवर्णमयी पंचतत्त्वा विद्योद्धृता श्रुताम् ।
अभ्यस्यमाना सततं भवक्लेशं निरस्यति ।। -योगशास्त्र, ८१४१ ३. मंगलोत्तम-शरण-पदान्यव्यग्र-मानसः ।
चतुश्रमाश्रमाण्येव स्मरन् मोक्षम् प्रपद्यते ॥ -वही, ८१४२ ४. विद्याक्ष्वा इति मालस्थां ध्यायेत्कल्याणकारकम् । -वही, ८।५७ ५. अनाहत शब्द ९ अक्षरों से मिलकर बना हुआ है --यथा (१) ॐकार;
(२) अनुस्वार, (३) ईकार, (४) ऊर्ध्वरेफ, (५) हकार, (६) हकार, (७) निम्न रेफ, (८) अनुस्वार और (९) ईकार । ॐबिन्द्राकारहरीद्धवा रेफबिन्द्वानवाक्षरम् ।
मालाधः स्यन्दि पीयूषबिन्दु विदुरनाहतम् ॥ -ज्ञानार्णव, पृ० २ ६. नासाग्ने प्रणवः शून्यमनाहतमिति त्रयम् ।
ध्यायन् गुणाष्टकं लब्ध्वा ज्ञानमाप्नोति निर्मलम् ॥ -योगशास्त्र, ८।६०
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