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________________ ( उ ) मार्ग में पावापुरी में भारत सेवक समाज का शिविर लगा था । श्री गुलजारीलाल नन्दा ने जब सुना कि महासती जी शीलवती व मृगावती जी उधर आ रही हैं तो उन्होंने तुरन्त आगे जाकर शिविर में पधारने की विनती की। आप श्री जी का सारगर्भित प्रवचन सुनकर बहुत प्रभावित हुए। उस प्रवचन में लगभग ८०,००० की उपस्थिति थी । मार्ग में आपने झरिया में देवशी भाई को मन्दिर और उपाश्रय बनवाने की प्रेरणा दी । १२०० मील का लम्बा रास्ता तय करते हुए आपने पंजाब में प्रथम चातुर्मास अम्बाला में किया । अम्बाला में जनजागरण कर वल्लभविहार की नींव रखी। अम्बाला के कॉलेज के दीक्षान्त समारोह में श्री मुरारजी भाई आपके प्रवचन को सुनकर बहुत ही प्रभावित हुए । पंजाब में फैली कुरीतियों को देखकर आपका मन बड़ा दुःखी हुआ और समाज के लिए कुछ ठोस कार्यं करने की मन में धारणा लिये आपने लुधियाना नगर में इन कुरीतियों के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजा दिया | समाजसुधार के सार्वजनिक भाषणों की धूम मच गयी, जैन-अजैन पूरी रुचि और श्रद्धा से आपकी शरण में आने लगे । सैकड़ों युवकों ने दहेज न लेने की प्रतिज्ञाएँ कीं, सैकड़ों परिवारों ने कुटुम्बी के मरणोपरान्त स्यापा इत्यादि का त्याग किया। जैन स्कूल के निर्माण के लिए दान की महिमा पर आपके ओजस्वी भाषण को श्रवण कर उपस्थित लोगों ने अपने आभूषण तक उतारकर दान कर दिये । जन-जागरण करते हुए आपने सारे पंजाब का भ्रमण किया और आपकी ही योजना से लुधियाना में सन् १९६० में जिनशासन- रत्न आचार्य श्री विजयसमुद्र सूरीश्वर जी के सान्निध्य में अखिल भारतीय जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स का सफल आयोजन हुआ । स्थानकवासी सम्प्रदाय के प्रकाण्ड विद्वान् सरलात्मा जैनागमरत्नाकर आचार्य सम्राट श्री आत्मारामजी महाराज आपके विद्याभ्यास से विशेष प्रभावित हुए और आपको मार्ग-दर्शन देते रहे । कुछ वर्ष पंजाब में विचरकर विद्याभ्यास के लिए आप फिर अहमदाबाद में आगम प्रभाकर श्रीपुण्यविजयजी म० सा० के पास विद्याध्ययन करने चली गयीं। वहाँ से सौराष्ट्र, बम्बई, मैसूर, बंगलोर, मद्रास इत्यादि क्षेत्रों मे विचरते हुए दिगम्बरं सम्प्रदाय के तीर्थ क्षेत्र मूलबिद्री में जाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002123
Book TitleJain Yog ka Aalochanatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArhatdas Bandoba Dighe
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Principle
File Size13 MB
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