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योग के साधन : ध्यान
१६१ प्रकार निरालम्ब ध्यान की सिद्धि हो जाने पर संसारावस्था बंद हो जाती है और इसके बाद केवलज्ञान और केवलज्ञान से 'अयोग' नामक स्थिति प्रकट होती है, जो परमनिर्वाण का ही अपरनाम है।
ध्यान के पर्याय के रूप में तप, समाधि, धीरोध, स्वान्तनिग्रह, अंत:संलीनता, साम्यभाव, समरसीभाव, सवीर्य-ध्यान आदि का प्रयोग किया गया है।
ध्यान के अंग-ध्यान के लिए प्रमुखतः तीन बातें अपेक्षित हैं-(१) ध्याता, (२) ध्येय और (३, ध्यान । ध्याता अर्थात् ध्यान करनेवाला, ध्येय अर्थात् आलम्बन तथा ध्यान अर्थात् एकाग्रचिन्तन । यानी इन तीनों की एकात्मकता ही ध्यान है। दूसरे शब्दों में जिसके द्वारा ध्यान किया जाता है वह ध्याता है; अथवा जिसका ध्यान किया जाता है वह ध्येय है; अथवा ध्याता का ध्येय में स्थिर होना ही ध्यान है। निश्चय-नय से कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण को षट्कारमयी आत्मा कहा गया है और इनको ही ध्यान कहा है। अतः आत्मा, अपनी आत्मा को अपनी आत्मा में, अपनी आत्मा के द्वारा, अपनी आत्मा के लिए अपनी आत्मा के हेतु से और अपनी आत्मा का ही ध्यान करता है। ____ध्यान की सामग्री-ध्यान की सामग्रियों को स्पष्ट करते हुए बतलाया गया है कि ध्यान में परिग्रहत्याग, कषायों का निग्रह, व्रतधारणा, मन
१. एधम्मि मोहसागरतरणं सेढी य केवलं येष ।
तत्तो अजोगजोगो, कम्मेण परमं च निब्बाणं ।। -वही, २० २. योगो ध्यानं समाधिश्च धी-रोधः स्वान्तनिग्रह । अन्तःसंलीनता चेति तत्पर्यायाः स्मृता बुधैः ।।
-आर्ष २१।१२; तत्त्वानुशासन, पृ० ६. ३. ध्यानं विधित्सता शेयं ध्याता ध्येयं तथा फलम् । -योगशास्त्र, ७।१ ४. ध्यायते येन तद्ध्यानं यो ध्यायति स एव वा ।
यत्र वा ध्यायते यद्वा, ध्यातिवां ध्यानमिष्यते ॥ -तत्त्वानुशासन, ६७ ५, स्वात्मानं स्वात्मनि स्बेन ध्यायेत्स्वस्मैस्वतो यतः।
षट्कारकामयस्तस्माद् ध्यानमात्मैव निश्चयात् ॥ -वही, ७४
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