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योग के साधन : आचार
अच्छी वस्तु में खराब वस्तु को मिलाकर बेचना या असली के स्थान पर नकली वस्तु चलाना । (२) स्तेन प्रयोग अर्थात् किसी को चोरी करने के लिए प्रेरित करना अथवा चोरी करनेवालों की मदद करना । (३) स्तेन-आहृतदान अर्थात् चोरी करके लायी गयी वस्तु को लेना। (४) विरुद्धराज्यातिक्रम अर्थात् राज्य की ओर से निर्धारित नियमों का उल्लंघन करना और (५) हीनाधिक मानोन्मान अर्थात् न्यूनाधिक नाप, . बाट तथा तराजू आदि से लेन-देन करना ।
व्रती-श्रावक को इन अतिचारों से बचना या सावधान रहना चाहिए। अचौर्याणुव्रती श्रावक वही है जो दूसरे की तृणमात्र वस्तु को चुराने के अभिप्राय से न अपने लिए ग्रहण करता है और न दूसरों को देता है।' ४. स्वदारसंतोष
इसे ब्रह्मचर्याणुव्रत भी कहते हैं। यह व्रत श्रावक के लिए नितान्त आवश्यक है और उसे अपनी पत्नी में ही संतुष्ट रहना चाहिए। वह अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य सभी स्त्रियों को माँ, बहन एवं बेटी के रूप में देखे । इस व्रत का प्रतिपादन कई ग्रंथों में विभिन्न दृष्टियों से किया गया है, जिनमें रत्नकरण्डश्रावकाचार,' सर्वार्थसिद्धि, पुरुषार्थ सिद्युपाय,' स्वामिकातिकेयानुप्रेक्षा सागारधर्मामृत आदि उल्लेखनीय हैं। ज्ञानार्णव में तो स्त्री-समागम के दस दोषों का उल्लेख है,
१. परस्वस्याप्रदतस्यादानं स्तेयमुदाहृतम्।
सर्वस्वाधीनतोयादेरन्यत्र तन्मतंसताम् । -प्रबोधसार, ६१
(ख) उपासकाध्ययन, २६।२६४ २. उपासकदशांगसूत्र, १।१६ ३. अमितगतिश्रावकाचार, ६।४६ ४. रत्नकरण्डश्रावकाचार, ३।१३ ५. सर्वार्थसिद्धि, ७।२० ६. पुरुषार्थसियुपाय, ११८ ७. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा, ३३८ ८. सागारधर्मामृत, १३१५२ ९. ज्ञानार्णव, ११७-९
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