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जैन योग का आलोचनात्मक अध्ययन
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इस प्रकार हैं--पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षाव्रत । " उपासक दशांग में तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत के लिए सामूहिक नाम शिक्षाव्रत व्यवहृत हुआ है । कुन्दकुन्द ने ग्यारह प्रतिमाओं के साथ ही बारह व्रतों का उल्लेख कर दिया है । तत्त्वार्थसूत्रकार ने भी बारह व्रतों का ही उल्लेख किया है । पाँच अणुव्रतों को मूलगुण भी माना गया है, लेकिन इन व्रतों के साथ मद्य, मांस एवं मधु का त्याग भी मूलगुण के अन्तर्गत ही है । कहीं-कहीं पाँच अणुव्रतों के साथ जुआ, मद्य एवं मांस-त्याग को भी मूलगुण माना गया है । पद्मपुराण में मधु, मद्य, मांस, जुआ, रात्रि भोजन एवं वेश्यागमन के त्याग को नियम ७ कहा गया है । हरिवंशपुराण के अनुसार पाँच उदुम्बर फल के त्याग एवं परस्त्री - त्याग को नियम कहा गया है | "
अणुव्रत
श्रावक के लिए विहित पाँच अणुव्रत मुनि के महाव्रतों की अपेक्षा लघु अथवा सरल, स्थूल होते हैं । अहिंसा आदि महाव्रतों का पालन तीन योग ( मन, वचन, काय) तथा तीन करण (कृत, कारित, अनुमोदन )
१. सम्यक्त्वमूलानि पंचाणुव्रतानि गुणात्रयः ।
शिक्षापदानि चत्वारि, व्रतानि गृहमेधिनाम् । - योगशास्त्र, २1१;
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तथा विंशतिविंशिका, ९१३ ... पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालस्सविहं सावय धम्मं - - उपासकदशांग, १1५५
३. प्राभृतसंग्रह, पृ० ५९
४. तत्त्वार्थसूत्र, ७।१५-१६
५. (क) रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ६६; ( ख ) सागारधर्मामृत, २२ ६. हिंसाऽसत्यस्तै यादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात् । द्यूतान्मासान्मद्याद्विरतिर्गुहिणोऽष्ट सन्त्यमीमूलगुणाः ॥
-- चारित्रसार, पृ० १५
७. मधुनो मद्यतो मांसाद् द्यूततो रात्रिभोजनात् ।
वेश्यासंग मनाच्चास्य विरतिनियमः स्मृतः ॥ - पद्मपुराण, १४।२०२
८. हरिवंशपुराण, १८२४८
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