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भूमिका : ३९ वेंकटाचार्य जी हैं । इसमें भी एक नायक अपनी विरहिणी नायिका के पास अपना सन्देश एक कोकिल के माध्यम से भेजता है। - कोकिलसन्देश' : इस दूतकाव्य के रचनाकार आचार्य वेदान्तदेशिक के पुत्र श्री वरदाचार्य जी हैं। यह दूतकाव्य, इस काव्य-परम्परा में अपने नाम के ही अन्य काव्यों में चतुर्थ है। इसमें भी कोकिल के माध्यम से एक विरही अपनी विरहिणी के पास अपना विरह सन्देश भेजता है । इस दूतकाव्य का उल्लेख मैसूर की गुरुपरम्परा में मिलता है।
कोकिलसन्देश : श्री गुणवर्धन द्वारा प्रणीत यह दूतकाव्य इस काव्य परम्परा का पंचम दूतकाव्य है। इस काव्य का केवल उल्लेख ही मिलता है । अन्य काव्यों के समान ही इसमें भी कोकिल द्वारा नायक के सन्देश को नायिका के पास तक पहुँचाया गया है ।
कृष्णदूतम् : इस दूतकाव्य के रचनाकार श्री नृसिंह कवि जो हैं। काव्य में कृष्ण को दूत के रूप में चित्रित किया गया है। काव्य प्रकाशित नहीं हो पाया है, इस दूतकाव्य का भी मात्र उल्लेख ही मिलता है।
गरुड़सन्देश : श्री वेल्लंकोड रामराय द्वारा प्रणीत इस दूतकाव्य में गरुड़ को काव्य का दुत बनाया गया है। यह काव्य भी अभी तक प्रकाशित नहीं हो पाया है। अभी तक इसके उल्लेख भर ही ऐतिहासिक ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं।
गरुड्सन्देश५ : अपने नाम का यह दसरा दतकाव्य श्री नसिंहाचार्य द्वारा प्रणीत है। जो कि तिरुपति स्थानम् के हैं। इस काव्य के बारे में कोई भी अन्य सामग्री नहीं प्राप्त होती है।
गोपीदूतम् : यह दूतकाव्य कृष्ण-कथा पर आधारित है। इस काव्य के रचनाकार श्री लम्बोदर वैद्य जी हैं । एक पंक्ति में उन्होंने अपना परिचय दिया है कि वे "उस राजा वासुदेव के सुपुत्र थे, जिनका यश सारे संसार १. डब्ल्यू, एफ० गुणवर्धन, न्यूयार्क द्वारा सम्पादित । . २. सीलोन ऐण्टिक्वेरी, भाग ४, पृ० १११ पर द्रष्टव्य; अप्रकाशित । ३. अद्यार पुस्तकालय की हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों की सूची के भाग २,
संख्या ४ पर द्रष्टव्य । ४. संस्कृत साहित्य का इतिहास : कृष्णमाचारियर, पृ० ३३३ पर द्रष्टव्य । ५. संस्कृत के सन्देशकाव्य : रामकुमार आचार्य, परिशिष्ट २; अप्रकाशित ।' ६. काव्यसंग्रह : जीवानन्द विद्यासागर, जिल्द ३, पृ० ५०७-५३०, कलकत्ता,
१८८८; अप्रकाशित ।
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