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________________ चतुर्थ सर्ग ११९ शिरोमणि हैं, वह तापित है आप शीतलात्मा हैं, वह स्पष्ट ही राग युक्त है और आप विरक्त हैं। अतः आधार और आधेय में मात्र औपचारिक नहीं स्पष्टतः भेद है ॥३॥ गोत्र स्यादावशकलपुरे चावरं वर्णमग्रयोज्जाग्रद्वर्णामुपतदमपि त्वं तु नातिष्ठपो माम् । शीलं यद्वोन्नतिमत इदं जात्यवर्णानपेक्ष मेरुर्नाम्ना वहति शिरसा चैतमुन्नीलचूलः ॥३३॥ गोत्रस्यादा • हे ईश ! त्वं गोत्रस्य वंशस्य शब्दच्छलात् गोत्रनाम्नो व आदो च पुनः अशकलपुरे सम्पूर्णनगरे अथवा शब्दच्छलात् अशकलपुरे सम्पूर्णशरीरे अवरं वर्ण नीचं लोकम् अथवा शब्दच्छलात् नीचवर्णं नकाराक्षरं अथवा नोचवणं श्यामवर्णम् अतिष्ठपः अस्थापयः । हे ईश ! तु पुनः माम् उपतदमपि तयोः द्वयोः गोत्रपुरयोः समीपेऽपि न अतिष्ठपः । किंभूतां माम्-- अग्र्योजानवर्णाम् अग्र्यः प्रधाना उत्प्राबल्येन जाग्रत् जागरूकः वर्णः क्षत्रियलक्षणो ययोः यस्याः सा ताम् । यद्वा अथवा उन्नतिमतः पुरुषस्य इदं जात्यवर्णानुपेक्ष्यं शीलं सहजम् उन्नतिमतः, किल जात्यवर्णान् कुलीनानपि न स्वीकुर्वन्ति इतिभावः । यतो मेरुः स्वर्णगिरिः नाम्ना च पुनः उन्नीलः सन् शिरसा मस्तकेन एतम् अवरं वर्ण नीचवणं मकारलक्षणं श्यामलवणं च वहति उत्प्राबल्येन नीला श्यामला चूला चूलिका अग्रविभागो यस्य सः ॥३३॥ हे नाथ ! आपने अपने गोत्र अर्थात् नाम के आदि में अवर (नीच) वर्ण "नकार" को एवं अपने सम्पूर्ण शरीर में अप्रशस्त वर्ण (रंग) कृष्ण (काले रंग) को तो स्थान दिया पर प्रशस्त क्षत्रिय वर्ण एवं गौर वर्ण वाली मुझ राजीमती को आपने नाम गोत्र दोनों के पास भी नहीं रखा अर्थात् कहीं भी स्थान नहीं दिया । सम्भवतः बड़े लोगों का यह स्वभाव ही होता है कि वे उत्तम वर्ण आदि की अपेक्षा नहीं करते अर्थात् ऊँच-नोच का ध्यान नहीं रखते जैसे ऊँची पर्वतश्रेणी वाले मेरु ने भी अपने नाम के आदि में नीच वर्ण (अक्षर) 'म' को एवं सिर पर नील वर्ण की चोटी को धारण किया है ॥३३॥ आसीदाशेत्यमम ! महिषी प्रीतये ते जनिष्ये श्यामा क्षामा त्वकृषि विधिना प्रत्युतोषोत्प्रदोषा । पश्याम्येवं यदि पुनरजात्मत्वमप्यापयिष्ये मूलात्कर्मप्रकृतिविकृतीः सर्वतोऽपि प्रकृत्य ॥३४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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