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________________ ... चतुर्थ सर्ग अवलोकनाश्चर्य भुवि पृथिव्यां विलुठनं, तथा रिक्तमुष्टेः बन्धनम् उत्तानत्वे करचरणनं हस्तचरणोक्षेपणम् अव्यक्तवर्णम् अस्पष्टाक्षरं प्रोक्तं जल्पनम्, तथा पद्भ्यां शनकैः मन्दमन्दम् अन्जु वक्र यानं गमनम्, यत्तदाकृष्टिकाङ्क्षा यत्तद्वस्तवाकर्षणवाञ्छा, तथा उभयापाणि उभाभ्यां पाणिभ्याम् अभिमुखं सन्मुखम् आहू. तस्य आकारितस्य दूरेण यानं गमनम्, तथा हठात् प्रणयिनि सस्नेहले कण्ठाश्लेष: कण्ठालिङ्गनं, तथा जनन्याः मातु अङ्के उत्सङ्ग स्थानम् अवस्थितिम्, तथा पितुः कूर्चाकर्षः कूर्चाकर्षणम् ॥२२-२३॥ युग्मम् ॥ हे नाथ यदि आप वस्तुतः अराग हैं तो दिव्य ज्ञानत्रयी से युक्त होते हुए भी सामान्य बालक को तरह 'कभी स्नेहिल हँसना, तेजी से सरकना, सामने पड़ने वाली किसी भी वस्तु को कौतूहल पूर्वक देखना, भूमि पर लोटना, खाली हाथ मुट्ठी बाँधना, उत्तान लेटकर हाथ पैर चलाना, अस्पष्टाक्षर बोलना, पैदल ही वक्रता के साथ चलना, किसी वस्तु को पकड़ने की इच्छा करना, दोनों हाथों से बुलाने वाले व्यक्ति से दूर भागना, प्रेमीजन के गले लगना, हठपूर्वक माँ की गोद में बैठ जाना. पिता को दाढ़ो को पकड़कर खोंचना आदि बाललीला आपने क्यों की थो?।२२-२३। । एतत्सर्व गुरुजनमनोमोदनाथ यदि त्वं तत्त्वं विन्दुः स्वयमकुटिलं स्वीचकर्ष प्रकामम् । इत्थङ्कारं कतिचन समा मन्मुदे दारकर्म स्वीकृत्यैतत् किमुपजरसं नो तपस्तप्यसे स्म ॥२४॥ एतत्सर्व० हे श्रीनेमे ! यदि त्वं प्रकामम् अतिशयेन गुरुजनमनोमोदनार्थ पूज्यजनचित्ताहलादनार्थं स्वयम् आत्मनैव एतत् सर्व मुग्धं स्निग्धं स्मितमित्यादि अकुटिलं सरलं यथा स्यात् तथा स्वोचकर्ष अङ्गीचकर्ष । किंरूपः त्वम्-तत्त्वं विन्वु: तत्त्वस्य वेत्ता तत् तहि मन्मदे मम हर्षाय इत्थङ्कारम् इत्थं कृत्वा गुरुजनवत् कृत्वा कतिचन समाः कियन्ति वर्षाणि दारकर्म विवाहं स्वीकृत्य अङ्गीकृत्य उपजरसं जरासमीपे एतत् तपः किं नो तप्यसे स्म ॥२४॥ यदि ये सब बाल लीलाएँ आपने माता पिता गुरुजनों को प्रसन्न करने के लिए की हैं तो इसी प्रकार मेरी मनस्तुष्टि के लिए मुझे स्वीकार करके वृद्धावस्था में आप तपस्या में लीन क्यों नहीं होते ?॥२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002122
Book TitleJain Meghdutam
Original Sutra AuthorMantungsuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1989
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size15 MB
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