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________________ ऐतिहासिक तथ्य और उनका मूल्यांकन [४७ था। पुलमावि ब्राह्मण होते हुए भी बौद्धों को दान देता था। अतः इस धर्म-सहिष्णु ने पादलिप्त का भी स्वागत-सत्कार किया होगा। ६. वृद्धवादि-सिद्धसेन प्रबन्ध वृद्धवादि और सिद्धसेन गुरु-शिष्य थे । वृद्धवादि का जन्म गौड़देश के कोशला ग्राम में हुआ था। इनका बचपन का नाम मुकुन्द ब्राह्मण था । वे गुरु स्कन्दिलाचार्य के साथ भृगुपुर गये और उन्होंने उस बेजोड़ मल्लवादि मुकुन्द का नाम वृद्धवादि रख दिया। इधर सिद्धसेन का जन्म अवन्ति में हुआ था। इनके पिता देवर्षि और माता देवसिका ( देवश्री ) कात्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। सिद्धसेन भी वाद-विवाद में निष्णात हो गये किन्तु कालज्ञ वृद्धवादि से बाद में पराजित होकर उनके शिष्य हो गये । दीक्षा काल में सिद्धसेन का नाम 'कुमुदचन्द्र' था। इसके बाद सिद्धसेन को अवन्ति में 'सर्वज्ञपुत्रक' बिरुद मिला। विक्रमादित्य ने उसकी वन्दना की और मुद्राएँ अर्पित की जो जीर्णोद्धार में प्रयुक्त हुई। विचरण करते हए सिद्धसेन चित्रकुट पहुँचे जहाँ उन्होंने सर्षपविद्या और हेमविद्या ग्रहण की। सिद्धसेन चित्रकूट से कुर्मारपुर चले गये। वहाँ देवपाल राजा को प्रतिबोधित किया और राजा ने कहा कि पड़ोस के राजागण एक साथ इकट्ठा होकर मेरे राज्य पर आक्रमण करने आ रहे हैं। सूरि ने राजा के आसन्न संकट का निवारण किया। वृद्धवादि की मृत्यु के बाद सिद्धसेन उज्जयिनी के महाकाल-प्रासाद पहुँचे । सिद्धसेन ने द्वात्रिंशदद्वात्रिंशिका देव की स्तुति करना प्रारम्भ किया और कल्याण-मन्दिर स्तोत्र की रचना की। सिद्धसेन विहार करते हुए मालवा के ओङ्कार नगर पहुँचे। राजा ने सिद्धसेन को ऐश्वर्य प्रदान करना चाहा जिसके बदले में वादि ने राजा द्वारा ओङ्कार नगर में जैन मन्दिर को शिव मन्दिर से ऊँचा करवा दिया । ___ अन्त में सिद्धसेन दक्षिण में विहार करने गये और वहीं वे स्वर्ग सिधारे। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के तिथि-काल के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं । हरमन याकोबी सिद्धसेन के 'न्यायावतार' में आये 'भ्रान्त, अभ्रान्त, स्वार्थ और परार्थ' शब्दों के भ्रम में पड़कर आचार्य को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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