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अध्याय
-- १११, जैन व जैनेतर स्रोत - ११२, स्रोतों को उद्धृत करना - ११४, स्रोतों में भिन्न भाव - ११५, राजशेखर द्वारा प्रयुक्त साक्ष्य -११५, साक्ष्यों के दो प्रकार - ११६, विविध ग्रन्थों के
साक्ष्य - ११७। सात राजशेखर का इतिहास-दर्शन: कारणत्व परम्परा एवं कालक्रम
१२४-१५४ कारणत्व का अर्थ व महत्त्व -- १२४, कारणत्व की विविधता - १२५, चौलुक्य-चाहमान संघर्ष के कारण - १२६, चाहड़ का शत्रुपक्ष में जाने का कारण -- १२८, गाहड़वाल और सेनवंश में संघर्ष के कारण - १२८, चौलुक्यों और मालवा के परमारों में संघर्ष के कारण - १२९, कुमारपाल की मृत्यु के कारण - १३०, वामनस्थली के युद्ध और सन्धि कार्य के कारण - १३०, पञ्चग्राम युद्ध के कारण, तेजपाल और घूघुल के बीच युद्ध के कारण - १३१, मुसलमानों से संघर्ष के कारण-मोजदीन सुरत्राण के अभियान के कारण - प्रथम मोजदीन की पराजय के कारण -- १३३, द्वितीय मोजदीन सुल्तान बहरामशाह के साथ सन्धि के कारण - १३४, वास्तु-दोष के कारण - १३५, परम्परा का अर्थ व महत्त्व - १३६, जैन परम्परा व मुस्लिमपरम्परा - १३९, राजशेखर की परम्परा सम्बन्धी अवधारणा - १४०, परम्पराओं के दो रूप१४१, कालक्रम की अवधारणा - १४३, राजशेखर द्वारा प्रयुक्त कालक्रम की पद्धति - १४५, चापोकट-वंश की शासनावधि की गणना -१४६, महावीर के निर्वाण को काल-मापन का आधार मानना - १४७, वलभी-भङ्ग की तिथि - १४८,
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