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१९४ ] प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन इतिहास-दर्शन उद्भूत हो जाता था। चूंकि राजशेखर ने अपने ज्ञान को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया था, यथा-- (१) साहित्य, (२) इतिहास और ( ३ ) दर्शन जिनमें कल्पना, स्मृति और बुद्धि का क्रमशः सन्तुलित उपयोग किया गया था, इसलिये उसने इतिहास को स्मृति के अलावा परम्पराओं, अनुश्रुतियों और चक्षुदर्शियों पर भी आधारित किया था। इस प्रकार राजशेखर ने इतिहास को साहित्य के घेरे से बाहर किया और उसे स्वतन्त्र शास्त्र का दर्जा प्रदान किया और उसने इतिहास-लेखन को इतिहास-दर्शन के स्रोतों, साक्ष्यों, परम्पराओं, कारणत्व एवं कालक्रम पर आधारित किया।
अतः प्रबन्धकोश एक महत्वपूर्ण इतिहास ग्रन्थ है और राजशेखर अपने युग का निस्सन्देह एक इतिहासकार है। किसी युग का इतिहासकार वह व्यक्ति होता है जो उस युग की आकांक्षाओं को वाणी दे सके और युग को बता सके कि युग की आकांक्षाएँ क्या हैं ? राजशेखर ऐसा ही था।
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