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________________ राजशेखर का इतिहास-दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १५१ ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी मूल नक्षत्र में यह शास्त्र रचा गया।" इस कालक्रम में दो विशेषताएँ हैं- एक तो यह सूक्ष्मातिसूक्ष्म तिथि प्रदान करता है और दूसरे इस स्थल पर विशिष्ट भारतीय शैली में तिथि का वर्णन किया गया है। 'शरगगनमनुमिताब्दे' अर्थात् संवत्सर को विपरीत क्रम से पढ़ने पर मनु १४, गगन अर्थात् ० (शून्य) और शर ५ होते हैं। अतः ग्रन्थ-रचना की वि० सं० १४०५ की तिथि पर विश्वास करना ही पड़ेगा, क्योंकि यह स्वयं ग्रन्थकार द्वारा बड़ी सूझ-बूझ और आत्मविश्वास से प्रदान की गयी है। इस प्रकार प्रबन्धकोश में कालक्रम की चार पद्धतियाँ मिलती हैं( अ ) अङ्क-पद्धति, ( ब ) शब्द-पद्धति. ( स ) शब्दाङ्क पद्धति और (द ) विशेष शैली पद्धति । इस ग्रन्थ में कुछ कालक्रमीय सूचनाएँ अङ्कों में एवं गद्य रूप में मिलती हैं । अङ्क-पद्धति वाली तिथियाँ कालक्रम के व्यावहारिक पक्ष का निरूपण करती हैं। परन्तु प्रबन्धकोश में कुछ तिथियाँ शब्दों में एवं पद्य रूप में भी मिलती हैं जो कालक्रम के सैद्धान्तिक पक्ष का निरूपण करती हैं। कुछ ऐसी तिथियाँ भी मिलती हैं जो शब्दों और अङ्कों दोनों में एक साथ दी गयी हैं । वस्तुपाल प्रबन्ध में कालक्रम की तृतीय पद्धति का अनुगमन किया गया है और ग्रन्थकार प्रशस्ति में विशेष शैली पद्धति का अनुसरण किया गया है। हिन्दू काल-गणना में प्रत्येक संख्या के लिए पृथक् शब्द का प्रयोग किया जाता है।' १. "शरगगनमनुमिताब्दे (१४.५) ज्येष्ठामूलीयधवलसप्तम्याम् । निष्पन्नमिदं शास्त्रं ... ... .."" प्रको, पृ० १३१ । २. दे० पूर्ववणित अध्याय ३, ग्रन्थ-रचना काल । ३. दे० प्रको, पृ० ११८ । ४. दे. वही, पृ० १३१ । ५. जी० एच० दामन्त : इण्डि० एण्टि०, जि० ४, जनवरी, १८७५, पृ. १३ । दामन्त लिखते हैं कि तिथियों को दाहिने से बाएँ पढ़ना चाहिये । उन्होंने रंगपुर के बो?नकुटि मन्दिर में एक तिथि को खोजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002121
Book TitlePrabandh kosha ka Aetihasik Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravesh Bharadwaj
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1995
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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