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राजशेखर का इतिहास दर्शन : कारणत्व, परम्परा एवं कालक्रम [ १३९
उसने पूर्वगत अनुश्रुतियों को ग्रहण किया ।' उसी प्रबन्ध में आगे वह उद्घोषित करता है कि विक्रमादित्य ने जो कुछ कहा वह जन-परम्परा द्वारा सुनकर कहा था ।'
इस सम्बन्ध में एक बात यह महत्त्वपूर्ण है कि जिस प्रकार जैनों ने परम्परा को वरीयता दी, उसी प्रकार तत्कालीन भारतीय मुसलमान इतिवृत्तकारों ने भी इतिहास - लेखन में परम्परा को महत्ता प्रदान की । इस्लाम में परम्परा के लिए एक वचन 'हदीस और परम्पराओं के लिए बहुवचन 'अहादीस' शब्द प्रयुक्त होते हैं । जो बातें पुश्त-दर- पुश्त चली आ रही हों, उन्हें 'रवायत' भी कहते हैं | हज़रत मुहम्मद के समय से ही मुसलमानों ने उनके उपदेशों एवं कार्यों को सर्वोत्तम 'हदीस ' कहा है ।" "हदीस हजरत मुहम्मद के शब्दों, कार्यों और अनुमतियों के लिखित सङ्ग्रह हैं । "" हदीस के अध्ययन के बिना मुस्लिम-ज्ञान अपूर्ण रहता है ।"" इब्न सईद के 'तबकात' में कुछ साथियों को 'मग़ाज़ी' ( तारीखी रवायत ) अर्थात् ऐतिहासिक परम्पराओं पर अधिकारी माना गया । अतः इस्लाम में परम्पराएँ मुहम्मद साहब के उपदेशों एवं कार्यों के वे सुप्रसिद्ध मौखिक प्रमाण हैं जो उनके प्रारम्भिक अनुयायियों द्वारा चले आये हैं और अन्ततोगत्वा
१. 'अपरापरगुरुभ्यः पूर्वगतश्रुतानि लेभे ।' वही, पृ० १८ । २. 'एवं च जनपरम्परया श्रुत्वा विक्रमादित्यदेवः ' ।' वही ।
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३. मौलवी अब्दुल हक: स्टूडेण्ट्स स्टैण्डर्ड इंग्लिश उर्दू डिक्शनरी, कराची, १९६५, पृ० १३३३ ।
४. एम० जे० सिद्दीकी : हदीस लिटरेचर, कलकत्ता युनिवर्सिटी, १९६१, १ ।
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५. इब्राहीम, एज्जेद्दीन आदि ( अनु० ); फौट्टी हदीस, फिरदोस पब्लिकेशन्स, दिल्ली, १९७९, पृ० ७ । इन हदीसों में उमर अब्दुर्रहमान, अब्दुल्ला आयशा, अबू मुहम्मद अलहसन, इब्नमसूद, अब्दुल्ला जाबिर, अब्बास आदि के कथनों को हजरत मुहम्मद की वाणी के रूप में उद्धृत किया गया है । विद्वानों ने ऐसी चालीस अहादीस को इस्लाम की धुरी, इस्लाम का अद्धशि आदि कहा है । वही, पृ० २८ ।
६. बही, पृ० १३ |
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