SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन त्रिविध प्रज्ञा त्रिविध प्रज्ञा में भी चार विकल्पों का उल्लेख मिलता है-चिन्ता-श्रुत-भावना, परित्त-महद्गत-अप्रमाण,आय-अपाय-उपायकौशल्य, अध्यात्म-बाह्य-अध्यात्मबाह्य आदि। इस प्रकार बारह प्रकार की प्रज्ञा हो जाती है। चिन्तामयी प्रज्ञा- स्वतंत्र होकर मन से मनन एवं चित्त से चिन्तन करना अर्थात् बिना किसी दूसरे से सुने अपने से विचार करते हुए रूप, वेदना आदि अनित्य, दुःख एवं अनात्म स्वरूप है-~-इस प्रकार का चिन्तन करना चिन्तामयी प्रज्ञा कहलाती है। श्रुतमयी प्रज्ञा- धर्मशास्त्र आदि ज्ञान से पैदा हुई या दूसरे व्यक्ति से सुनकर प्राप्त की गयी प्रज्ञा श्रुतमयी प्रज्ञा है। भावनामयी प्रज्ञा- अन्तर्मन की चेतना की असीम भावनाओं में पैठने पर भावनामयी प्रज्ञा का आविर्भाव होता है। विभंग में कहा गया है कि सनकर अथवा बिना सुने अर्पणा समाधि को प्राप्त व्यक्ति की प्रज्ञा भावनामयी प्रज्ञा कहलाती है।१८७ परित्त प्रज्ञा- कामावचर भूमि के धर्मों को लेकर उत्पन्न प्रज्ञा परित्त प्रज्ञा कहलाती है। महद्गत प्रज्ञा- रूपावचर भूमि और अरूपावचर भूमियों के धर्मों को लेकर उत्पन्न प्रज्ञा को महद्गगत प्रज्ञा कहते हैं। अप्रमाण प्रज्ञा- निर्वाण को लेकर उत्पन्न प्रज्ञा अप्रमाण-प्रज्ञा के नाम से जानी जाती है।१८८ आयकौशल्य प्रज्ञा- अकुशल धर्मों की अनुत्पत्ति एवं प्रहाण तथा कुशल धर्मों की उत्पत्ति एवं स्थिति से उत्पन्न प्रज्ञा में निपुणता को आयकौशल्य प्रज्ञा कहते हैं। अपायकौशल्य प्रज्ञा- आय से रहित प्रज्ञा अपायकौशल्य प्रज्ञा कहलाती है। उपायकौशल्य प्रज्ञा- प्राणियों के हित एवं सुखकारक धर्मों को करते समय यदि कोई भय आ जाये तो उसे उसी क्षण दूर करने के लिए किया गया उपाय उपायकौशल्य प्रज्ञा है।१८९ अध्यात्म प्रज्ञा- अपने स्कन्धों को लेकर प्रारम्भ की गयी प्रज्ञा अध्यात्म अभिनिवेशवाली प्रज्ञा कही जाती है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy