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जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन
एकाग्रता को ही समाधि कहते हैं । १२८ जिसका एक आलम्बन होता है उसे एकाग्र कहते हैं और उसका भाव एकाग्रता कहलाता है। चूँकि सभी कुशल धर्म समाधि में प्रतिष्ठित होते हैं, अतः समाधि को प्रमुख माना गया है । जिस प्रकार किसी मीनार की सभी सीढ़ियाँ सबसे ऊपरवाली मंजिल की ओर ही ले जानेवाली होती हैं, ऊपर जाकर ही उनका अंत होता है, उसी प्रकार जितने भी कुशल धर्म है सभी समाधि की ओर जाते हैं। परन्तु ऐसा नहीं है कि बौद्ध ग्रन्थों में योग शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है। प्रयोग हुआ है, किन्तु मूल रूप से पालित्रिपिटक में योग शब्द का प्रयोग इस अर्थ में नहीं हुआ है। धम्मपद में योग को ज्ञानप्राप्ति का साधन माना गया है । १२९
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जैन एवं बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में यह माना गया है कि योग साधना आत्मा की शुद्धि करानेवाली क्रियाएँ हैं, जिनसे आत्मा का उत्तरोतर विकास होता है और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।
योग के प्रकार
बौद्ध योग-साधना का मुख्य सम्बन्ध समाधि से है । बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद पंचवर्गीय भिक्षुओं को दिये गये अपने प्रथम धर्मोपदेश में बुद्ध ने सबसे पहले ज्ञान-प्राप्ति का मार्ग बताते हुए कहा कि प्रव्रजितों को दो अन्तों का सेवन नहीं करना चाहिए। कारण, इन दोनों अन्तों के सेवन करने से न तो कामतृष्णा का विनाश होता है और न ही सच्चे ज्ञान का लाभ। इसके लिए तो मध्यममार्ग अर्थात् बीच का रास्ता ही श्रेयस्कर है। ज्ञान प्राप्ति की साधना करनेवाले योगी को न तो काम सेवन में लिप्त होना चाहिए और न ही अपने शरीर को कष्ट देना चाहिए । यही बीच का रास्ता बौद्ध धर्म में 'मध्यम - प्रतिपदा' के नाम से जाना जाता है । १३० इस मध्यम प्रतिपदा का दूसरा नाम ही आर्य अष्टांगिकमार्ग है। आर्य अष्टांगिक मार्ग में ऐसे आठ अंगों का समावेश किया गया है जिनके पालन करने से व्यक्ति शील तथा समाधि को प्राप्त कर प्रज्ञा लाभ करता है। निर्वाणगामी मार्गों में अष्टांगिक मार्ग श्रेष्ठ है। जिस प्रकार सभी धर्मों में वैराग्य और मनुष्य में चक्षुस्मान ज्ञानी -- बुद्ध श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार लोक में जितने भी सत्य हैं उनमें आर्यसत्य श्रेष्ठ है। बुद्ध का यह अष्टांगिक मार्ग दुःखनिरोधगामिनी प्रतिपद के नाम से भी जाना जाता है। इसके अन्तर्गत वे समस्त साधनाएँ आ जाती हैं जो दुःख निरोध में सहायक होती हैं । १ ३ १ अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग निम्नलिखित हैं- १. सम्यक् दृष्टि, २. सम्यक् - संकल्प, ३. सम्यक्-वाक, ४. सम्यक् - कर्मान्त, ५. सम्यक् - आजीव, ६. सम्यक् - व्यायाम, ७. सम्यक् स्मृति, ८. सम्यक् - समाधि ।
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