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________________ जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन परिहार- अपराधी श्रमण को श्रमण संघ से बहिष्कृत करना परिहार प्रायश्चित्त है। श्रद्धान्- अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य आदि महाव्रतों के भंग हो जाने पर पुन: प्रारम्भ से उन महाव्रतों का आरोपण करना श्रद्धान् है। विनय तप - विनय के तीन अर्थ होते हैं- अनुशासन, आत्मसंयम (शील) और नम्रता एवं सद्व्यवहार। परन्तु विनय का वास्तविक अर्थ होता है- वरिष्ठ एवं गुरुजनों का सम्मान तथा उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए अनुशासित जीवन जीना। विनय तप को परिभाषित करते हुए सर्वार्थसिद्धि में कहा गया है कि अपने से वरिष्ठ गुरु अथवा आचार्यों का आदर करना तथा उनकी आज्ञा का पालन करना विनय तप है।९७ तत्त्वार्थसूत्र में विनय के चार भेद कहे गये हैं।८ - (१) ज्ञान विनय, (२) दर्शन विनय, (३) चारित्र विनय, तथा (४) उपचार विनय । स्थानांग ९ में विनय के सात प्रकारों का वर्णन है- ज्ञान-विनय, दर्शन- विनय, चारित्र-विनय, मनो-विनय, वचन-विनय, काय-विनय तथा लोकोपचार-विनय। वैयावृत्य तप -धर्म-साधना में सहयोग करनेवाली आहार आदि वस्तुओं के द्वारा सहयोग करने के अर्थ में वैयावृत्य शब्द का प्रयोग होता है। वैयावृत्य सेवा, शुश्रुषा, पर्युपासना, साधर्मिक वात्सल्य आदि अनेक नामों से जाना जाता है। सर्वार्थसिद्धि में इसको परिभाषित करते हुए कहा गया है- शरीर से अथवा योग्य साधनों को जुटाकर उपासना भाव से गुरु, मुनि, वृद्ध व रोगी साधक आदि की सेवा शुश्रुषा करना वैयावृत्य तप है।१०० भिक्षुसंघ में दस प्रकार'०१ के साधकों की सेवा करना भिक्षु का कर्तव्य है (क) आचार्य की सेवा, (ख) उपाध्याय की सेवा, (ग) तपस्वी की सेवा, (घ) शैक्ष्य की सेवा, (ङ) रोगी की सेवा, (च) वृद्ध मुनि की सेवा, (छ) सहपाठी की सेवा, (ज) अपने भिक्षुसंघ के सदस्यों की सेवा, (झ) संयम करनेवाले प्रव्रजित मुनि की सेवा, (ब) ज्ञानादि गुणों में समान शीलवालों की सेवा। स्वाध्याय तप - सत्शास्त्रों का मर्यादापूर्वक पठन करना, विधि सहित अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करना स्वाध्याय है।१०२ सर्वार्थसिद्धि में कहा गया है- ज्ञान प्राप्ति के लिए आलस तजकर अध्ययन करना स्वाध्याय तप है।१०३ अभ्यास की दृष्टि से इसके भी पाँच प्रकार हैं- (क) वाचना, (ख) प्रच्छना, (ग) अनुप्रेक्षा, (घ) आम्नाय, (ङ) धर्मकथा। वाचना - वाचना का अर्थ होता है- पढ़ना। शब्द का शुद्ध उच्चारण करना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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