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________________ आध्यात्मिक विकास की भूमियाँ . १. स्थायी प्रबलतम (अनन्तानुबंधी) क्रोध, मान, माया और लोभ - ४ २. अस्थायी किन्तु अनियंत्रणीय (अप्रत्याख्यानी) क्रोध, मान, माया और लोभ–४ ३. नियंत्रणीय (प्रत्याख्यानी) क्रोध, मान, माया और लोभ- ४ ४. मिथ्यात्वमोह, मिश्रमोह और सम्यक्त्वमोह - ३ प्रमाद के अवरोध के कारण साधक के अन्दर पूर्ण आत्मजागृति सम्भव नहीं हो पाती है, इसलिए साधक को प्रमाद के कारणों का उपशमन करना होता है और जब वह प्रमादों को शमित करने में सफल हो जाता है तब विकास की अगली श्रेणी में प्रवेश कर जाता है। अप्रमत्तसंयत्त गुणस्थान इस अवस्था में साधक व्यक्त-अव्यक्त सम्पूर्ण प्रमाद आदि दोषों से रहित होकर आत्मसाधना में लीन रहता है। यह पूर्ण सजगता की स्थिति होती है। साधक का ध्यान अपने लक्ष्य पर केन्द्रित होता है, लेकिन प्रमादजन्य वासनाएँ बीच-बीच में साधक का ध्यान विचलित करती रहती हैं। फलतः साधक कभी प्रमादावस्था में विद्यमान रहता है। तो कभी अप्रमादावस्था में। इस प्रकार साधक की नैया छठवें और सातवें गुणस्थान के बीच में डोलती रहती है। इस श्रेणी में कोई भी साधक एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक नहीं रह पाता है। यदि वह एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक देहातीत भाव में रहता है तो वह आगे की श्रेणियों की ओर प्रस्थान कर जाता है या फिर प्रमाद के जाग्रत होने पर पुनः छठे गुणस्थान में चला जाता है। Jain Education International २४७ अपूर्वकरण गुणस्थान यह अवस्था आत्मगुण-शुद्धि अथवा लाभ की अवस्था है, क्योंकि इस अवस्था में साधक का चारित्रबल विशेष बलवान होता है और वह प्रमाद एवं अप्रमाद के इस संघर्ष में विजयी बनकर विशेष स्थायी अप्रमत अवस्था को प्राप्त कर लेता है, फलतः उसे एक ऐसी शक्ति की प्राप्ति होती है जिससे वह शेष बचे मोहबल को भी नष्ट कर सकता है। इस अवस्था में कर्मावरण के कम हो जाने के कारण आत्मा एक विशेष प्रकार के आध्यात्मिक आनन्द की अनुभूति करती है, ऐसी अनुभूति साधक को पूर्व में कभी नहीं हुई रहती है, इसीलिए इसे अपूर्व कहा गया है। इस गुणस्थान की अवस्था में साधक मोक्ष को अपने अधिकार क्षेत्र के अधीन समझता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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