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________________ १९० जैन एवं बौद्ध योग : एक तुलनात्मक अध्ययन हमने कितनी होशियारी से माल ठग लिया और किसी को विदित भी नहीं हुआ और खूब आनन्दित हो, ऐसे परिणाम को चौर्यानुबन्धी या स्तेयानुबन्धी या चौर्यानन्द रौद्रध्यान कहते हैं। इस ध्यान में ध्यानी हमेशा लोभ के कारण दूसरों की लक्ष्मी, स्त्री व धन को हड़पने का ही चिन्तन अपने अशुभ चित्त में करता रहता है। मन को ऊँचा करते हुये अपने को 'मैं राजा हूँ, ऐसा समझता है आदि। संरक्षणानन्द रौद्रध्यान धन-धान्यादि भोग्य पदार्थों को जुटाना, उन्हें सुरक्षित रखने के लिए धन की रक्षा करना, परिग्रह में लीन रहना, अनिष्ट चिन्ता में व्याप्त रहना, सबके प्रति शंकाशील होना संरक्षणानन्द रौद्रध्यान या परिग्रहानुबन्धी रौद्रध्यान है।६४ ।। इस प्रकार रौद्रध्यानी हमेशा दूसरों के अहित के बारे में ही विचार करता रहता है। परन्तु ऐसा नहीं है कि वह केवल आनन्द ही उठाता है, बल्कि वह दूसरे प्राणियों द्वारा पीड़ित भी होता है। रौद्रध्यान के उपर्युक्त चारों प्रकार राग, द्वेष और मोह से आकुल व्यक्ति में ही होते हैं। ये चारों प्रकार ही जन्म-मरण को बढ़ानेवाले और नरक गति के मूल कारण हैं।६५ इस प्रकार रौद्रध्यान सामान्य तौर से संसार की वृद्धि करनेवाला ही है और खास तौर से नरक गति के पापों को उत्पन्न करनेवाला है, क्योंकि इससे तीव्र संक्लेश ही होता है और इससे बन्ध जाने पर सानुबन्ध कर्म द्वारा भव परम्परा का सर्जन होता है, फलतः संसार की वृद्धि का होना स्वाभाविक ही है। रौद्रध्यानी के लक्षण ध्यानशतक में रौद्रध्यानी के प्रमुख चार लक्षण६ बताये गये हैं उत्सन्नदोष- रौद्रध्यान के हिंसा आदि चार प्रकारों में से किसी एक में बहुलतया प्रवृत्त होना। बहुलदोष- रौद्रध्यान के सभी प्रकारों में प्रवृत्त होना। नानाविध दोष- चमड़ी उधेड़ने, आँखे निकालने आदि हिंसात्मक कार्यों में बार-बार प्रवृत्त होना। आमरणान्तदोष- जिसमें मरणान्त तक हिंसादि करने का अनुताप नहीं होता है वह रौद्रध्यानी है। ज्ञानार्णव में रौद्रध्यानी का लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि क्रूरता, दण्डकी, परुषता, वञ्चकता, कठोरता, निर्दयता आदि रौद्रध्यानी के बाह्य चिह्न होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002120
Book TitleJain evam Bauddh Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudha Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size14 MB
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